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आगम के अनमोल रत्न
चाले और भी बहुत से ऐश्वर्यशाली नागरिक, नगररक्षक, सामन्त राजा, सेठ, सेनापति और सार्थवाह उस नगरी में रहते थे ।
वहाँ अन्धकवृष्णि नाम के शक्तिशाली राजा रहते थे । स्त्रियों के सभी लक्षणों से युक्त धारिणी नाम की उसकी रानी थी । वह धारिणी रानी एक समय कोमल शय्या पर सोई हुई थी। उस समय उसने सिंह का स्वप्न देखा । स्वप्न देखकर रानी जागृत हुई। फिर राजा के पास जाकर उसने अपना देखा हुआ स्वप्न सुनाया । राजा ने स्वप्नः का फल बताते हुए कहा कि तुम एक नररत्न को जन्म दोगी । यथासमय रानी ने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया और उसका नाम गौतम कुमार रखा । उसने गणित, लेख आदि बहत्तर कलाओं को सीखा । युवा होने पर माठ राजकन्याओं के साथ उसका विवाह हुआ । विवाह में आठ हिरण्यकोटी, आठ सुवर्ण कोटि आदि आठ-आठ वस्तुएँ इन्हें दहेज में मिलीं।
एक बार भगवान अरिष्टनेमि अपने विशाल परिवार के साथ द्वारवती के वाहर नन्दनवन उद्यान में पधारे । कृष्ण वासुदेव आदि अनेक यादव उनके दर्शन के लिए गये । गौतमकुमार भी भगवान की सेवा में पहुँचा। भगवान ने धर्मोपदेश दिया। भगवान का उपदेश गौतम कुमार पर असर कर गया । उसने भगवान से प्रार्थना की कि हे भगवन् ! मैं अपने माता पिता से पूछ कर आपके पास दीक्षा लेना चाहता है इसके बाद वह घर आया और माता पिता को समझाकर उसने भगवान अरिष्टनेमि के समीप प्रव्रज्या ग्रहण कर ली । स्थविरों के पास रहकर उसने ग्यारह अंगसूत्रों का अध्ययन किया । इसके बाद भगवान की आज्ञा प्राप्त कर उसने भिक्षु को बारह प्रतिमाओं का सम्यक् पालन किया तथा गुणरत्न संवत्सर आदि कठोर तप किये । बारह वर्ष तक संयम का पालन कर अन्तिम समय में शत्रुजय पर्वत पर एक मास की संलेखना की और भन्तिम श्वास में केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष. प्राप्त किया ।