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आगम के अनमोल रत्न
अनशन पूरा करके केवलज्ञान प्राप्त किया और देह का त्याग कर समस्त दुःखों का अन्त किया-सिद्धत्व प्राप्त किया ।
किसी समय शुक अनगार अपने सहस्र शिष्यपरिवार के साथ शैलकपुर पधारे । महाराज शैलक भी अपने पांचसौ मन्त्रियों के साथ उनका उपदेश सुनने गया । उपदेश सुनने के बाद शैलक महाराजा शुक अनगार से बोला-भगवान् ! मै अपने पुत्र भण्डूक को राजगद्दी पर स्थापित कर आप के पास प्रव्रज्या ग्रहण करना चाहता हूँ । अनगार ने कहा-राजन् ! तुम्हें जैसा सुख हो वैसा करो। महाराजा घर आये और अपने पांचसौ मन्त्रियों को बुला कर प्रवज्या ग्रहण करने की इच्छा प्रगट की । मन्त्रियों ने भी महाराजा शैलक के साथ दीक्षा लेने का निश्चय प्रगट किया । पश्चात् महाराजा शैलक ने अपने पुत्र को राज्यगद्दी पर स्थापित कर एवं मन्त्रियों ने अपने अपने पुत्रों को मन्त्री पद देकर, पांचसौ मन्त्रियों के साथ शुक भनगार के पास प्रव्रज्या ग्रहण की । शैलक राजर्षि ने स्थविरों से सामाथिकादि अंग सूत्रों का अध्ययन किया । शुक अनगार ने शैलकराजर्षि को सब तरह से योग्य जानकर उन्हें पन्थक आदि पांचसौ अनगारों के साथ स्वतन्त्र विचरण करने की आज्ञा दे दी । शैलकराजर्षि स्वतन्त्र बिहार करते हुए निर्गन्थ धर्म का प्रचार करने लगे। ___ • शुक. अनगार ने अपने हजार शिष्यों के साथ लम्बे समय तक संयम का पालन किया । अन्त में इन्होंने पुण्डरगिरि पर्वत पर एक मास का पादोपगमन अनशन किया और केवलज्ञान प्राप्त कर ये मोक्ष में गये ।
शैलक राजर्षि तपमय जीवन व्यतीत करने लगे । नित्य नीरस अत्यन्त रूक्ष तथा कालातिकान्त आहार के सेवन से एक समय उनके शरीर में दाहज्वर और खुजली जैसी व्याधि उत्पन्न हो गई । इससे उनका शरीर अत्यन्त कृश हो गया ।