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आगम के अनमोल रत
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केवलज्ञान प्रोप्ति के बाद भगवान एक मुहूर्त तक वहीं ठहरे। इन्द्रादि देवों ने आकर भगवान का केवलज्ञान उत्सव मनायाः । देवों ने समवशरण की रचना की । समवशरण में बैठकर भगवान ने देशना दी। इस प्रथम समवशरण में केवल · देवता ही उपस्थित थे अतः विरति रूप संयम का लाभ किसी भी प्राणी को नहीं हुआ। यह आश्चर्यकानक घटना जैनागमों में 'अछेरा के नाम से प्रसिद्ध है । ऐसे दश आश्चर्य हुए वे इस प्रकार हैं:-, .
. दस आश्चर्य• जो वात, अभूतपूर्व (पहले कभी नहीं हुई) हो और लोक में विस्मय एवं आश्चर्य की दृष्टि से देखी जांती हो ऐसी बात को अच्छेरा (भाचर्य) कहते हैं । इस अवसर्पिणीकाल में दस बातें आश्चर्य जनक हुई है। वे इस प्रकार हैं:
१-उपसर्ग २-गर्भहरण ३-स्त्रीतीर्थङ्कर ४-अभव्या परिषद ५-- कृष्ण का अपरकका गमन ६-चन्द्र सूर्य अवतरण ७-हरिवंश कुलोत्पत्ति ८-चमरोत्पात ९--अष्टशत-सिद्धा १०-असंयत पूजा । '
प्रथम तीर्थङ्कर श्री ऋषभदेव स्वामी के समय एक यानी एक समय में उत्कृष्ट अवगाहनी वाले १०८ व्यक्तियों का सिद्ध होना । दसवें तीर्थक्कर श्री शीतलनाथ स्वामी के समय में एक अर्थात् हरिवंशोत्पत्ति, उन्नीसर्व तीर्थकर श्री मल्लीनाथ स्वामी के समय एक यानी स्त्री तीर्थङ्कर । बाइसवें तीर्थकर श्री नेमिनाथ भगवान के समय में एक अर्थात् कृष्णवासुदेव का अपरकंका गमन । चौबीसवें तीर्थङ्कर श्री महावीर स्वामी के समय में पांच अर्थात् १ उपसर्ग २ गर्भहरण ३ चमरोत्पात ४ अभव्या परिषद् ५ चन्द्रसूर्यावतरण । उपरोक्त दस बातें इस अवसर्पिणी में अनन्तकाल में हुई थीं अतः ये दस ही इस हुण्डा अवसर्पिणी में अच्छेरे माने जाते हैं। • - नौवें तीर्थङ्कर भगवान सुविधिनाथ के समय तीर्थ के उच्छेद से होनेवाली असंयतों की पूजा रूप एक आश्चर्य हुआ । इस प्रकार असंयतों की पूजा भगवान सुविधिनाथ के समय प्रारंभ हुई थी इसलिये यह