________________
३९०
आगम के अनमोल रत्न
में यह बात पड़ी । उसने शकडाल से कहा-"देखो, वररुचि को गंगा दीनारें देती है।" शस्खाल ने कहा-“यदि मेरे सामने गंगा उसे कुछ दें, तो मैं जानू ।" ____ अगले दिन शकडाल ने एक आदमी को छिपाकर बैठा दिया और उससे कह दिया कि जो कोई वस्तु वररुचि छिपाकर गंगा में रखे उसे चुपचाप उठाकर ले आना। थोड़ी देर बाद वररुचि दिनारों की पोटली गंगा में रख चला गया। उस आदमी ने वह पोटली वहाँ से लाकर शकडाल को दे दी। नन्द शक्डाल को लेकर गंगा के किनारे पहुंचा। वररुचि ने प्रतिदिन की तरह गंगा मैया की स्तुति कर पानी में डुबकी लगाई और हाथों और पैरों से पोटली टटोलना शुरु किया । पोटली न मिलने पर वररुचि अत्यन्त लज्जित हुआ । इसी समय शकडाल ने राजा को वह पोटली दिखाई । वररुचि लज्जित होकर वहाँ से चला गया।
वररुचि को शकडाल के ऊपर बहुत क्रोध आया और वह उससे बदला लेने का अवसर खोजने लगा। एक बार की बात है, शकडाल के पुत्र श्रीयक का विवाह होने वाला था। शकडाल ने राजा को निमंत्रित किया और उसके स्वागत के लिये बड़ी धूमधाम से तैयारियाँ की। शकडाल की दासी द्वारा वररुचि को उसके घर का सब हाल मालूम होता रहता था। उसने सोचा कि शकडाल से बदला लेने का यह बहुत अच्छा अवसर है। उसने बहुत से बालक इकट्ठे किये और उन्हें लड्डू बाँटता हुआ जोर-जोर से गाने लगा-नन्दराजा को मालूम नहीं शकडाल क्या कर रहा है । राजा को मार कर वह अपने पुत्र श्रीयक को राजगद्दी पर बैठाना चाहता है। राजा को यह सुन कर बहुत क्रोध आया । उसे मालूम हुआ कि सचमुच शकडाल के घर बड़े जोरों की तैयारियां हो रही हैं । यद्यपि महामात्य शकडाल छत्रचंवर, आभूषण, मुकुट एवं शरत्रों को तैयार करवाकर विवाह के अवसर पर राजा को भेंट देना चाहता था किन्तु राजा ने वररुचि