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आगम के अनमोल रत्न
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आर्य रक्षित के दुर्बलिका पुष्यमित्र, आर्य फल्गुरक्षित, विन्ध्य और निह्नब गोष्ठमाहिल्ल आदि शासन प्रभावक शिष्य थे।।
कुछ ही वर्षों के बाद वीर सं. ५९७ में मंदसौर नगर में आर्य रक्षित का स्वर्गवास हो गया। वीर सं. ५२२ में जन्म, वीर सं.५४४ में दीक्षा, वीर सं. ५८४ में युगप्रधानपद । कुल आयु ७५ वर्ष की थी। आप १९३ युगप्रधान थे । इन्होंने युगप्रधान आचार्य भद्रगुप्तसरि की निर्यामणा वीर सं. ५३३ में कराई थी। इस दृष्टि से इनका जन्म वी. स. ५०२, वी सं. ५२४ में दीक्षा, इस प्रकार कुल आयु ९५ वर्ष की मानना युक्तिसंगत लगता है।
धर्मरुचि अनगार चंग नाम की नगरी थी। वह धन-धान्य से समृद्ध थी। उस चम्पा नगरी के ईशान कोण मे सुभूमि नाम का उद्यान था।
उस चम्पा नगरी, में सोम, सोमदत्त और सोमभूति नाम के तीन धनाढ्य ब्राह्मणबन्धु निवास करते थे । वे ऋग्वेदादि ब्राह्मण शास्त्रों के ज्ञाता थे।
उन तीनों की पत्नियाँ थी--नागश्री, भूतश्री, यक्षश्री । वे रूपवती थीं और ब्राह्मणों को अत्यन्त प्रिय थीं ।
एक बार तीनों ब्राह्मणवन्धुओं ने मिलकर विचार किया "हमारे पास बहुत धन है । सात पीढ़ियों तक खूब दिया जाय, खूब खाया जाय और खूब वाँटा जाय तो भी नहीं खुट सकता । अत. हमलोगों को एक दूसरे के घरों में प्रतिदिन बारी-बारी से उत्तमोत्तम भोजन बनवाकर एक साथ बैठकर खाना चाहिये ।" यह बात सवने स्वीकार की। वे प्रतिदिन एक दूसरे के घरों में भोजन बनवाते और साथ में बैठकर खाते ।
एक दिन नागश्री के घर भोजन की बारी आई । उस दिन नागश्री ने उत्तम प्रकार का भोजन बनाया । शाक के लिये उसने एक