________________
४०८
आगम के अनमोल रत्न
शाम्ब आदि साठ हजार दुर्दान्त योद्धाओं, वीरसेन आदि इक्कीस हजार पुरुषों, महासेन आदि छप्पन हजार योद्धाओं, रुक्मिणी आदि सोलह हजार रानियों, अनंग सेना आदि अनेक सहस्त्र गणिकाओं, ईश्वरों, एवं तलव सार्थवाह आदि बहुसंख्यक लोग सुखपूर्वक वहाँ रहते थे ।
1
उस नगरी में थावच्चा नाम की एक गाथापत्नी निवास करती थी । वह बुद्धिमती, सुन्दरी तथा व्यवहार दक्षा थी । उसके पास अपार धनराशि थी । पति का अभाव होने पर भी पति की विरासत के रूप में थावच्चा की गोद में एक सुन्दर, सुकोमल एवं प्रिय दर्शनीय आत्मज था थावच्चा पुत्र । थावच्चा का वह एक मात्र आधार था । मां अपने पुत्र को प्राण से भी अधिक चाहती थी । जब थावच्चापुत्र आठ वर्ष का हुआ तो उसे कलाचार्य के पास भेज दिया गया । उसने अल्प समय में पुरुष की सभी क्लाएँ सौखलीं । युवा होते ही बत्तीस सुन्दरी एवं गुणवती इभ्य कन्याओं के साथ थावच्चापुत्र का विवाह होगया । उसे बत्तीस बत्तीस दहेज मिले। थावच्चा गाथापत्नी ने अपनी पुत्रवधुओं के लिए बत्तीस सुन्दर प्रासाद बनवाये जो विशाल और ऊंचे थे। उनके मध्य में थावच्चापुत्र के लिए एक विशाल महल बनवाया । वह उसमें अपनी बत्तीस सुन्दरियों के साथ सुखपूर्वक रहने लगा ।
एक समय भगवान अरिष्टनेमि द्वारवती नगरी के नन्दनवन उद्यान में पधारे | भगवान के आगमन के समाचार मिलते ही नगरी को जनता दर्शनार्थ उद्यान की ओर प्रस्थित हुई । कृष्णवासुदेव को जब भगवान के आगमन की सूचना मिली तो वे भी राजोचित महान वैभव के साथ विजय नामक गंधहस्ती पर आरूढ़ होकर उद्यान की ओर चल पड़े । वहाँ पहुँच उनकी पर्युपासना करने लगे । थावच्चापुत्र भी पूरे वैभव के साथ भगवान को वन्दन करने तथा उनका उपदेश सुनने के लिए वहाँ पहुँचा । सारी जनता के उचित स्थान पर बैठ जाने के बाद भगवान ने उपदेश देना आरम्भ किया | उपदेश क्या था मानो