________________
आगम के अनमोल रत्न
कहा-"महाराज आप ठीक कहते हैं, परन्तु इस शरावी वररुचि ने उस निर्दोष को धोखे से मरवा डाला ।" राजा ने पूछा क्या यह शराब भी पीता है ? मालूम करने पर यह बात सच निकली । राजा ने उसे गरम-गरम रांगा पिला कर मरवा डाला ।
एक वार वर्षाकाल के समीप आने पर शिष्यगण आचार्य संभूति के पास आकर चातुर्मास की आज्ञा मांगने लगे । एक ने कहा-मै सिंह की गुफा में जाकर चातुर्मास विताऊँगा । दूसरे ने दृष्टि विषसर्प की वांवी पर चातुर्मास विताने की आज्ञा मांगी। तीसरे ने कुएँ की डोली पर चार महिने खड़े रहने की आज्ञा मांगी। जब मुनि स्थूलिभद्र के भाज्ञा लेने का अवसर आया तो उन्होंने नाना कामोद्दीपक चित्रों से चित्रित, अपनी पूर्व परिचिता सुन्दरी नायिका कोशा गणिका की चित्रशाला में षड्रस युक्त भोजन करते हुए चातुर्मास करने की आज्ञा मांगी। आचार्य ने सब को आज्ञा प्रदान की सब साधुओं ने अपने अपने चातुर्मास के स्थान की ओर विहार किया । मुनि स्थूलिभद्र कोशा गणिका के घर पहुँचे ।
कोशा का स्थूलिभद्र पर हार्दिक अनुराग था । उनके चले जाने के बाद वह बहुत उदास रहने लगी थी। उनके वियोग में वह जर्जरित हो गई थी । चिरकाल के बाद उन्हें मुनिवेष में उपस्थित हुए देख वह बहुत दुःखित हुई किन्तु इस बात से सन्तोष भी हुआ कि वे चार महिने उसी की चित्रशाला में रहेंगे । साथ ही उसने सोचामेरे यहाँ चातुर्मास करने का और क्या अभिप्राय हो सकता है ? इसका कारण उनके हृदय में मेरे प्रति रहा हुआ सूक्ष्म मोह भाव ही है । चित्रशाला में स्थूलिभद्र को रहने के लिए आज्ञा मिलगई।
कोशा वैश्या की चित्रशाला साक्षात् कामदेव की मधुशाला थी। सब ओर कण कण में मादकता एवं वासना का उद्दाम प्रवाह बहता