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आगम के अनमोल रत्न
का प्रवचन सुना । मालभिया के प्रसिद्ध धनिक गृहपति चुल्लशतक और उसकी स्त्री बहुला ने श्रावरुधर्म स्वीकार किया ।
यहाँ पोग्गल नामका एक विभंगज्ञानी परिव्राजक रहता था । उसने भगवान का प्रवचन सुनकर आहती दीक्षा ग्रहण की । दीक्षा लेकर ग्यारह भंग पढ़ा और कठोरतप करके अन्त मैं निर्वाण को प्राप्त हुआ।
आलभिया से भगवान राजगृह पधारे और गुणशील उद्यान में ठहरे । यहाँ के प्रसिद्ध धनिक, मकाती, किकिम, अर्जुन और काश्यप ने निर्गन्थ प्रवचन को सुनकर आप से दीक्षा ग्रहण की। ___भगवान का यह चातुर्मास राजगृह में व्यतीत हुआ । १९ वा चातुर्मास
चातुर्मास के बाद भी भगवान राजगृह में ही धर्म-प्रचारार्थ ठहरे । इस सतत प्रचार का आशातीत लाभ हुआ । राजगृह के अनेक प्रतिष्ठित नागरिकों ने भगवान से श्रमणधर्म स्वीकार किया ।' जालिकुमार, भयालि, उवयालि, पुरुषसेन, करिषेण, दीर्घदन्त, लटदन्त, गूढदन्त, शुद्धदन्त, हल्ल, द्रुम, द्रुमसेन, महाद्रुमसेन, सिंह, सिंहसेन, महासिंहसेन, पूर्णसेन इन श्रेणिकों के तेइस पुत्रों ने और नन्दा, नन्दमती, नन्दोत्तरा, नन्दसेगिया, महया, सुमरुता, महामरुता, मरुदेवा, भद्रा, सुभद्रा, सुजाता, सुमणा, और भूतदिना आदि श्रेगिक को १३ रानियों ने भगवान से प्रवज्या ग्रहण की।
____ उस समय भगवान महावीर के दर्शन के लिये मुनि आर्द्रक गुणशील उद्यान में जा रहे थे । मार्ग में उन्हें गोशालक, बौद्ध भिक्षु, हस्तितापस आदि अनेक अन्य तीयिक मिलें । आईक ने उन्हें वाद में पराजित किया। वाद में पराजित कुछ हस्तितापसों एवं सप्रतिबोवित पांच सौ चोरों के साथ आर्द्र मुनि भगवान से आ मिला । भगवान ने उन सब को प्रवजित किया । इस वर्ष भी भगवान ने वर्षावास राजगृह में ही बिताया ।