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ग्यारह गणधर
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भगवान महावीर का निर्वाण और गौतम का केवलज्ञान
गौतमस्वामी आदि विशाल शिष्य समूह के साथ भगवान महावीर राजगृह से विहार कर अपापापुरी पहुँचे । यहाँ देवताओं ने तीन वों से विभूषित रमणीक समवशरण की रचना की । अपने आयुष्य का अन्त जानकर प्रभु अपना अन्तिम धर्मोपदेश देने बैठे।
उस दिन भगवान ने सोचा-'आज मै मुक्त होने वाला हूँ। गौतम का मुझ पर बहुत अधिक स्नेह है । उस स्नेह ही के कारण गौतम अब तक केवलज्ञान से वंचित रहा है। इसलिए कुछ ऐसा उपाय करना चाहिये कि उनका स्नेह नष्ट हो जाये । मेरे निर्वाण के प्रत्यक्ष दृश्य को देखकर उसकी आत्मा को जवरदस्त धक्का लगेगा। यह सोच भगवान ने गौतमस्वामी से कहा-गौतम ! पास के गाँव में देवशर्मा नामक ब्राह्मण है । वह तुम्हारे उपदेश से प्रतिबोध पायेगा । इसलिये तुम उसे उपदेश देने जाओ।" भगवान महावीर की आज्ञा को शिराधार्य कर गौतम देवशर्मा को उपदेश देने चले गये । गौतमस्वामी के उपदेश से देवशर्मा ने प्रतिबोध प्राप्त किया ।
इधर भगवान महावीर ने कार्तिक अमावस्या की मध्यरात्रि में निर्वाण प्राप्त किया ।
गौतमस्वामी देवशर्मा ब्राह्मण को प्रतिबोध कराके लौट रहे थे तो देवताओं की वार्ता से उन्होंने प्रभु के निर्वाण की खबर जानी । खवर सुनते ही वे मूर्छित होगये। मूर्छा के दूर होने पर वे चित्त में सोचने लगे-"प्रभु! निर्वाण के दिन आपने मुझे किस कारण दर मेज दिया ? हे जगत्पति ! इतने काल तक मैं आपकी सेवा करता रहा, पर अन्तिम समय में आपका दर्शन नहीं कर सका । उस समय जो लोग आपकी सेवा में उपस्थित थे, वे धन्य थे । हे गौतम ! तू पूरी तरह वज से भी कठोर है ? जो प्रभु के निर्वाण को सुनकर भी तेरा हृदय खण्ड-खण्ड नहीं हो जा रहा है । हे प्रभु ! अवतक मै भ्रान्ति में