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आगम के अनमोल रत्न
दूसरी मान्यतानुसार जम्बूस्वामी की दीक्षा के बीस वर्ष वाद प्रभवस्वामी ने दीक्षा ग्रहण की। ४४ वर्ष श्रमण पर्याय का पालन कर ८४ वर्ष की अवस्था में वीर सं. ७५ में स्वर्गवासी हुए ।
३. शय्यभवाचार्य भगवान महावीर के चतुर्थ पट्टधर आचार्य । आप राजगृह के निवासी वत्सगोत्री ब्राह्मण थे। ये वैदिक साहित्य के धुरन्धर विद्वान थे। एक बार यज्ञ के अवसर पर प्रभवस्वामी के उपदेश से प्रभावित होकर ये जैन मुनि बन गये । आप जब दीक्षित हुए तव पत्नी गर्भवती थी। पश्चात् अवतरित हुए भनकपुत्र ने बचपन में ही चंपा नगरी में आपसे भेंट की और मुनि होगया। अपने ज्ञान में पुत्र को केवल-छह महिने का अल्पजीवी जानकर आत्मप्रवाद आदि पूर्व से दशवै कालिक सूत्र का संकलन कर उसे पढ़ाया । इस सूत्र का रचना काल वीर. सं. ८२ के आस पास है।
शय्यंभवस्वामी ने २८ वर्ष की वय में दीक्षा ग्रहण की । ३४ वर्ष तक मुनि जीवन में रहे | जिनमें २३ वर्षे तक युगप्रधान पद पर अधिष्ठित रहे । कुल ६२ वर्ष की आयु में वीर सं. ९८ में स्वर्गस्थ हो गये । आपके पट्टपर आचार्य यशोभद्र बैठे ।
४. भद्रबाहुस्वामी ___भगवान महावीर के सातवें पट्टधर आचार्य । आर्य यशोभद्र के शिष्य । संभूतिविजय के पश्चात् भाप आचार्यपद पर प्रतिष्ठित हुए। आप प्राचीन गोत्री ब्राह्मण थे । आपका जन्म प्रतिष्ठानपुर का माना जाता है। वराहमिहिर संहिता का निर्माता वराहमिहिर आपका छोटा भाई था। वराहमिहिर पहले साधु था आचार्य पद न मिलने से वह गृहस्थ होगया और भद्रबाहु की प्रतिद्वन्दिता करने लगा । विद्वानों का मत है कि वर्तमान में उपलब्ध वराहमिहिर संहिता भद्रबाहु के समय की नहीं है।
- भद्रबाहु प्रभव से प्रारंभ होनेवाली श्रुतकेवली परम्परा में पंचम श्रुतकेवली हैं । चतुर्दश पूर्वधर हैं । दशाश्रुतस्कन्धचूणि में आपको दशाश्रुत, बृहद्कल्प भऔर व्यवहार सूत्र का निर्माता बताया है । कल्प सूत्र के नाम से प्रसिद्ध पर्युषणकल्पसूत्र भी आपके द्वारा ही रचित है ।