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आगम के अनमोल रत्न
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उपसर्गहर स्तोत्र के कर्ता भी आप ही माने जाते हैं। सपादलक्ष, सवा. लक्ष गाथा में प्राकृत में वसुदेव चरित्र की भी आपने रचना की थी जो इस समय अनुपलब्ध है। अनुश्रुति है कि भद्रबाहु ने प्राकृत भाषा में भद्रबाहु संहिता नामक एक ज्योतिष ग्रन्थ भी लिखा था। जिसके आधार पर उत्तरकालीन द्वितीय भद्रवाहु ने संस्कृत में भद्रबाहु संहिता का निर्माण किया । ____ पाटलीपुत्र में भागमों की प्रथम वाचना आपके समय ही पूर्ण हुई । उस समय में १२ वर्ष का भयंकर दुष्काल पड़ा । साधु संघ समुद्र तट पर चला गया । दुष्काल के समाप्त होने पर साधुसंघ पाटलिपुत्र में एकत्र हुमा और एकादश अंगों का व्यवस्थित रूप से संकलन किया। दुष्काल का समय वीर सं. १५४ के आसपास बताते हैं क्योंकि इसी समय नन्द साम्राज्य का उन्मूलन होकर मौर्य चन्द्रगुप्त का साम्राज्य स्थापित हुआ। दुष्काल की समाप्ति पर वीर संवत् १६० के लगभग पाटलीपुत्र में श्रमणसंघ की परिषद् हुई। स्थूलिभद्र के नेतृत्व में इस परिषद् ने यथास्मृति ११ अंगों का संकलन तो कर लिया परन्तु १२वें दृष्टिवाद का ज्ञाता कोई मुनि न होने से उसके संकलन का कार्य भटक गया । दृष्टिवाद के पूर्णज्ञाता आचार्य भद्रबाहु थे परन्तु वे दुष्काल पड़ने पर ध्यान साधना के लिए नेपाल चले गये थे। उनसे दृष्टिवाद का ज्ञान प्राप्त करने के लिए स्थूलिभद्र भादि पांचसौ. साधु नेपाल गये । स्थूलिभद्र ने १० पूर्व तक तो अर्थ सहित अध्ययन किया भौर अग्रिम चार पूर्व मात्र मूल ही पढ़ पाये, अर्थ नहीं । भद्रबाहु प्रतिदिन मुनियों को सात वाचनाएँ देते थे। शेष समय महाप्राण के ध्यान में व्यतीत करते थे।
कल्पसूत्र की स्थविरावली में भद्रवाह स्वामी के चार शिष्यों का उल्लेख है-स्थविर गोदास, अग्निदत्त, यजदत्त, और सोमदत्त । उक शिष्यों में से गोदास की क्रमश चार शाखाएँ प्रारंभ हुई । १ ताम्रलिप्तिका २ कोटिवर्षिका ३ पाण्डवर्द्धनिका, ४ और दासी क्वटिका ।
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