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आगम के अनमोल रत्न
उत्कृष्ट चारित्र का पालन किया और मर कर बीतशोका नगरी के राजा पद्मरथ की रानी वनमाला के उदर में पुत्र रूप से जन्म लिया । बालक का नाम शिवकुमार रखा गया । शिवकुमार युवा हुमा । उसने सागरदत्त मुनि का उपदेश सुना और माता पिता को पूछ कर दीक्षा ले ली । साधु बनकर कठोर तप किया और समाधि पूर्वक मरकर ब्रह्म देव लोक में विद्युन्माली देव हुआ ।
वहाँ की आयु पूर्णकर भावदेव का जीव राजगृह के धनाढ्यश्रेणी ऋषभदत्त की धारिणी नामक पत्नी के उदर में आया । धारिणी रानी ने जम्बूवृक्ष का स्वप्न देखा । गर्भकाल के पूर्ण होने पर धारिणी ने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया । स्वप्न दर्शन के अनुसार उसका नाम जम्बूकुमार रखा गया । जम्बूकुमार युवा हुमा । उसका विवाह इभ्य की आठ कन्याओं के साथ होना तय हुभा ।
उस समय सुधर्मास्वामी अपने शिष्य परिवार के साथ राजगृह पधारे । जम्बूकुमार उपदेश सुनने सुधर्मा स्वामी के पास पहुँचा । सुधर्मा स्वामी की वैराग्यपूर्ण वाणी सुनकर उसने दीक्षा लेने का निश्चय किया । घर आकर उसने माता पिता से दीक्षा की आज्ञा मांगी । माता पिता ने इकलौती सन्तान, अपार धनराशि होने से एवं पुत्रस्नेहवश उसे आज्ञा नहीं दी, किन्तु आठ सुन्दर कन्याओं के साथ उसका विवाह कर दिया। विवाह के अवसर पर कन्याओं के माता पिताओं ने ९९ करोड़ का दहेज दिया था। घर आकर अम्बूकुमार ने रात्रि में अपनी आठों स्त्रियों को उपदेश दिया और उन्हें वैराग्य-रंग में रंग दिया । जब वह अपनी स्त्रियों को संसार की भसारता समझा रहा था, उसी समय प्रभव नामक चोर अपने पांच सौ साथियों के साथ चोरी करने वहाँ भाया । अम्बूकुमार ने उन्हें भी प्रतिबोध दिया। जम्बूकुमार के त्याग, वैराग्य और ज्ञान से प्रभावित हो उसने भी अपने साथियों के साथ दीक्षा लेने का विचार किया ।
दूसरे दिन भाठ स्त्रियाँ, प्रभव और उसके पांचसौ साथी, इन सब को लेकर वह अपने माता पिता के पास आया और उन्हें भी