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आगम के अनमोल रत्न
१. जम्बूस्वामी मगध देश में सुग्राम नाम का रम्य नगर था । वहाँ राष्ट्रकूट नाम का किसान रहता था। उसकी स्त्री का नाम रेवती था । उसके भवदत्त और भाव देव नाम के दो पुत्र थे। सुस्थित आचार्य का उपदेश सुनकर भवदत्त ने दीक्षा ग्रहण की और गीतार्थ बना ।
एक कार भवदत्त मुनि विहार करते करते सुग्राम आये । वहाँ अपने कुटुम्वीजनों को प्रतिवोध देने के लिए गुरु की आज्ञा ले अपने घर गये । उस समय भावदेव का तत्काल विवाह हुआ था । भावदेव की पत्नी नागिला अत्यन्त रूपवती रमणी थी। भावदेव उस पर अत्यन्त आसक्त था । भाई ने उसे उपदेश दिया । यद्यपि उसके मन पर भाई मुनि के उपदेश का किंचित् भात्र भी असर नहीं था, किन्तु भाई के स्लेह-वश वह नव विवाहिता पत्नी को छोड़कर साधु बन गया । भाई के साथ उसने अन्यत्र विहार कर दिया किन्तु उसका मन पत्नी में ही लगा रहता था । वह दिन रात अपनी पत्नी नागिला का ही विचार करता रहता था।
कुछ समय के बाद भवदत्त मुनि का स्वर्गवास हो गया । भाई के स्वर्गवास के बाद उसने सोचा--"जिस भाई के उहने से मैने' संयम लिया है वह तो अव संसार में नहीं रहा" यह सोच वह रात्रि में ही अन्य मुनिवरों को सोता छोड़ सुग्राम की ओर चल पड़ा। चलते चलते वह सुग्राम नगर के यक्ष मन्दिर में ठहरा ।
नागिला को अब यह समाचार मिला तो वह एक वृद्धा स्त्री को साथ लेकर मुनि दर्शन के लिए आई। उसने नागिला को पहचान लिया और पुनः गृहस्थाश्रम में आने की इच्छा प्रकट की । नागिला सती और अत्यन्त धर्मनिष्ठा थी। उसने भावदेव को समझाया । नागिला के उपदेश से भावदेव का मन पुनः संयम में स्थिर हो गया। उसने