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आगम के अनमोल रत्न
यह ठीक नहीं । यह वेद वाक्य गृहाश्रमी की जीवनचर्या का सूचक है न कि निर्वाणाभाव का प्रतिपादक । भगवान के स्पष्टीकरण से प्रभास का संशय दूर हो गया और निग्रन्थ प्रवचन का उपदेश सुनकर वे भगवान महावीर के अपने छात्रगण के साथ शिष्य हो गये।
वे वय की अपेक्षा से भगवान महावीर के सब से छोटे गणधर थे। इन्होंने सोलहवर्ष की अवस्था में दीक्षा ग्रहण की। आठवर्ष तक तप जप ध्यान कर इन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया । सोलहवर्ष तक केवली अवस्था में विचरे । श्रमण भगवान महावीर के केवली जीवन के पचीसवें वर्ष राजगृह के वैभारगिरि पर मासिक अनशन पूर्वक चालीस वर्ष की अवस्था में निर्वाण प्राप्त किया ।
एकादश गणधर कोष्ठक (दर्शक यन्त्र)
इन्द्रभूति गौतम गोबर गाँव
अग्निभूति ___ वायुभूति गौतम गोबर गाँव गोवर गाँव
गौतम
५०.
१६
४२
१०
गणधर का नाम गोत्र नाम गाँव नाम ग्राहस्थ्यपर्याय छद्मस्थ पर्याय केवली पर्याय श्रमण पर्याय सर्वायु वीर निर्वाण से निर्वाण स्थल
१२
१८
१२
२८
२८
९२
४२ राजगृह
राजगृह
राजगृह
गणधर का नाम गोत्र नाम गाँव नाम
व्यक्त भरद्वाज कोल्लाग -
सुधर्मा मण्डिक अग्नि वैश्यायन वसिष्ठ कोल्लाग मौर्य