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आगम के अनमोल रत्न
९. अचल भ्राता भगवान महावीर के नौवे गणधर अचलभ्राता कोशला के निवासी हारित गोत्रीय ब्राह्मण थे । आपकी माता का नाम नंदा और पिता का नाम वसु था । ये तीन सौ छात्रों के विद्वान अध्यापक थे। ये सोमिल ब्राह्मण के यज्ञोत्सव में पावा मध्यमा भाये थे।
पण्डित अचलभ्राता को पुण्य पाप के अस्तित्व में शंका थी इनका तर्क यह था कि "पुरुष एवेदं . " इत्यादि श्रुतिपदों से जब केवल पुरूष का ही अस्तित्व सिद्ध किया जाता है तब पुण्य पाप के अस्तित्व की शक्यता ही कहाँ रहती है परन्तु दूसरी तरफ "पुण्यः पुण्येन.' इत्यादि वेद वाक्यों से पुण्य पाप का अस्तित्व भी सूचित होता था। इसलिये इस विषय का वास्तविक सिद्धान्त क्या होना चाहिये, इस वात का अचलभ्राता कुछ भी निर्णय कर नहीं सके थे ।
अचलभ्राता जब महावीर के समवशरण में गये तो भगवान महावीर ने वेद वचनों का समन्वय करके पुण्यपाप का अस्तित्व प्रमाणित कर उनकी शंका का समाधान किया और निग्रन्थ प्रवचन का उपदेश सुनाकर उन्हें छात्र सहित अपना शिष्य बना लिया ।
अचलभ्राता ने छियालीस वर्ष की अवस्था में प्रार्हस्थ्य का त्याग कर श्रामण्य धारण किया, बारह वर्ष तक तप ध्यान कर केवलज्ञान प्राप्त किया और चौदह वर्ष केवली दशा में विचरकर बहत्तर वर्ष की अवस्था में मासिक अनशन कर राजगृह के वैभारगिरि पर निर्वाण प्राप्त किया ।
१०. मैतार्य श्रमण भगवान महावीर के दसवे गणधर का नाम मैतार्य था। ये वत्सदेशान्तर्गत तुगिक संनिवेश के रहनेवाले कौडिन्य गोत्रीय ब्राह्मण थे । इनकी माता वरुणदेवा और पिता 'दत्त' थे । मैतार्य तीन सौ छात्रों के आचार्य थे। ये सोमिल ब्राह्मण के आमंत्रण पर अपने तीन सौ छात्रों के साथ पावामध्यमा गये थे।
विद्वान मैतार्य "विज्ञानधन एवैतेभ्यो भूतेभ्यः समुत्थाय ." इत्यादि वेदवाक्यों से पुनर्जन्म के विषय में शंकाशील थे परन्तु