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वासुदेव और वलदेव
एक समय राजा दशरथ ने कुशस्थल पर चढ़ाई कर दी । राजा दशरथ की सेना के सामने राजा सुकोशल की सेना न ठहर सकी । अन्त में सुकोशल हार गया । राजा सुकोशल ने अपनी कन्या कौशल्या का विवाह दशरथ के साथ कर दिया । इससे दोनों राजाओं का सम्बन्ध बहुत घनिष्ठ हो गया । अयोध्या में आकर राजा दशरथ रानी कौशल्या के साथ आनन्दपूर्वक रहने लगे ।
इसके बाद राजा दशरथ ने कमलकुल के राजा सुवन्धुतिलक की मित्रादेवी रानी के गर्भ से जन्मी हुई सुमित्रा और अनिदित सुन्दरी राजकुमारी सुप्रभा के साथ विवाह किया ।
लका के अधिपति रावण ने एक बार किसी नैमित्तिक से पूछामेरी मृत्यु स्वतः होगी या दूसरों के द्वारा ? उसने कहा-दशरथ के पुन राम की पत्नी सीता के कारण तुम दशरथ पुत्र लक्ष्मण द्वारा मारे जाओगे।
रावण के भ्राता विभीषण ने नैमित्तिक की बात को मिथ्या करने के लिए दशरथ की हत्या करने का निश्चय किया ।
सभा में बैठे हुए नारद ने यह सब वृत्तान्त सुना । वे तत्काल दशरथ के पास आये और उनसे कहने लगे "रावण के भ्राता विभीषण ने तुम्हें मार डालने की प्रतिज्ञा की है। अतः तुम सावधान रहना ।"
दशरथ ने जब यह सुना तो उसने अपने मन्त्रियों को राज्य संभला दिया और अकेला ही वह वहाँ से जंगल की ओर निकल गया।
विभीषण को धोखे में डालने के लिये मन्त्रियों ने दशरथ की एक लेप्यमय मूर्ति बनाई और उसे महल की एक अन्धेरी जगह में रखवा दी।
क्रोधग्रस्त विभीषण अयोध्या में आया और अन्धकार में रखी हुई दशरथ की लेप्यमय मूर्ति का उसने खड्ग से सिर काट दिया । उस समय सारे नगर में कोलाहल मच गया। अन्तःपुर में चारों भोर रोना