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वासुदेव और बलदेव
६. पुरुषपुण्डरीक वासुदेव और आनन्द वलदेव
अठारहवे तीर्थकर अरनाथ के समय चक्रपुर नाम का नगर था । वहां महाशिर नाम का राजा राज्य करता था। उसकी दो रानियाँ थीं। एक का नाम वैजयन्ती और दूसरी का नाम लक्ष्मीवती था । वैजयन्ती रानी ने चार स्वप्न देखकर एक पुत्र को जन्म दिया । जिसका नाम 'आनन्द' कुमार रखा गया। लक्ष्मीवती ने सातस्वप्न देखकर एक वीर पुत्र को जन्म दिया उसका नाम पुरुषपुण्डरीक रखा गया । दोनों युवा हुए। दोनों के बीच प्रगाढ स्नेह था । युवावस्था में पुरुषपुण्डरीक ने बलि नामक प्रतिवासुदेव को मारकर वासुदेव पद प्राप्त किया । आनन्द बलदेव बने । दोनों भाई तीन खण्ड पर एक छत्र राज्य करने लगे।
पुरुपपुण्डरीक वासुदेव ने ६५ हजार वर्ष की लम्बी भायु में अनेक युद्ध कर पापों का संचय किया और भरकर बठी नरक में गये ।।
भाई की मृत्यु के बाद भानन्द बलदेव ने सुमिन मुनि के पास दीक्षा ग्रहण की। उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया और अन्त में ८५ हजार वर्ष की अवस्था में मोक्ष प्राप्त किया।
७. दावामुदेव और नन्दन बलदेव वाराणसी नगर में अग्निसिंह नाम के प्रतापी राजा राज्य करते थे। उनकी जयन्ती और शेषवती नाम की दो गुणपती रानियाँ थीं । जयन्ती रानी को चार महास्वप्न सूचित कर नन्दन चलदेव ने जन्म प्रहण किया । कुछ काल के बाद रानी शेषवती ने भी सात महास्वप्न देखे और गर्भ काल के पूर्ण होने पर एक वीर पुत्र को जन्म दिया । उसका नाम दत्त रखा गया । दोनों बालक युवा हुए । युवावस्था में उनका अनेक सुन्दर राजकन्याओं के साथ विवाह हुआ । दत्त ने अपने पिता से प्राप्त राज्य को विस्तृत किया और अपने प्रतिशत्रु प्रहाद को मारकर वासुदेव पद प्राप्त किया । नन्दन बलदेव बने । दोनों