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वासुदेव और बलदेव कृष्ण को बहुत ओर की प्यास लगी और बलदेव पानी की खोज में चले । कृष्ण पीत वस्त्र ओढ़कर एक वृक्ष की शीतल छाया में पैर पर पैर चढ़ाकर सो गये । इतने में वहाँ जराकुमार जो बारह वर्ष भाई की रक्षा के लिये वन वन की खाक छान रहा था धनुष वाण लेकर आया । कृष्ण को सोते देख जराकुमार ने समझा कि कोई हिरण वैठा है । कृष्ण के पद्मकमल चिन्ह को हिरण की आँख मान कर उसने फौरन ताक कर उसके पैर में एक तीर मारा । कृष्ण एकदम सोते सोते चिल्लाकर बोले-भरे ! यह किसने मुझ निरापराधी पर वाण चलाया है ? जराकुमार को अव मालूम हुआ कि यह हिरण नहीं बल्कि कोई पुरुष है। जराकुमार ने अपना परिचय देते हुए कहा कि अरिष्टनेमि की भविष्यवाणी सुनकर अपने बन्धुजनों को छोड़कर मैं घर से निकल गया और तभी से मै वन वन को धूल छानता फिरता हूँ। कृष्ण को जब मालूम कि वह उसका भाई जराकुमार है तो उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा- 'मै वही अभागा तुम्हारा भाई हूँ जिसके खातिर तुम वन वन भटकते फिरते हो। जराकुमार ने कृष्ण को गले लगा लिया और जोर जोर से रुदन करने लगा । कृष्ण ने जराकुमार से कहा-"जराकुमार! तुम इस समय यहाँ से भाग जाभो कारण कि यदि वलराम देखेगे तो तुम्हें जीता नहीं छोड़ेंगे। तुम मेरी कमर से रत्नों की पेटी खोल लो और जाकर कुन्ती बुआ को देकर कहना कि कृष्ण ससार से चला गया है।" भाई का आदेश शिरोधार्य कर जराकुमार रोते हुए वहाँ से चला गया ।
कृष्ण कुछ समय तक स्थिर रहे बाद में उनके मन में जराकुमार के प्रति अत्यन्त रोष उत्पन्न हुआ। उन्हे वाण की चोट से भरणान्त वेदना हो रही थी । अन्त में उन्होंने जोर से पृथ्वी पर पादप्रहार किया और अपने प्राण छोड़ दिये।
- कुछ समय के बाद बलदेव एक कमल के पत्ते का दोना वनाकर उसमें पानी ले आये। कृष्ण को लेटा देख उन्होंने समझा कि