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आगम के अनमोल रत्न
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उस महती सभा में भगवान महावीर ने सर्वभाषानुगामिनी अर्धमागधी भाषा में एक प्रहर तक धर्मोपदेश दिया जिसमें लोक, अलोक, जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष का अस्तित्व सिद्ध किया । नरक क्या है, नरक में दुःख क्या है, जीव नरक में क्यों जाते हैं, तिर्यञ्च गति में जीवों को किस प्रकार शारीरिक एवं मानसिक कष्ट सहन करने पड़ते हैं, इसका वर्णन किया । देवगति में पुण्य फलों को भोगकर अविरत जीव किस प्रकार फिर संसार की नाना गतियों में भ्रमण करते हैं, इस का भी आपने दिग्दर्शन कराया। अन्त में भगवान ने मनुष्यगति को अधिक महत्त्वपूर्ण और दुर्लभ बताते हुए उसे सफल बनाने के लिये पांच महाव्रत, पांच अनुव्रत, सात शिक्षावत और सम्यक्त्व का उपदेश दिया । भगवान के इस उपदेश की. सर्वत्र प्रशंसा होने लगी।
____ उस समय देवगणों को आकाश से नीचे उतरते देख इन्द्रभूति आदि ब्राह्मणों के मन में विचार हुआ कि उनके यज्ञ के प्रभाव से देवगण वहाँ आये हैं । पर देवताओं को यज्ञ मण्डप छोड़कर-जिधर भगवान महावीर स्वामी थे-उधर जाते देखकर ब्राह्मणों को बड़ा दुःख हुआ ।
इधर सारे नगर में भगवान महावीर के ज्ञान और लोकोत्तर उपदेश की खूब प्रशंसा होने लगी। मध्यमा पावापुरी के चौक और बाजारों में उन्हीं की चर्चा होने लगी। इस चर्चा को भी सोमिल के अतिथि विद्वान् ब्राह्मणों ने सुना । देवताओं के आगमन और लोगों के मुख से महावीर की प्रशंसा सुनकर वे चौकन्ने हो गये । - इन्द्रभूति ने देवताओं के झुण्ड और मानवों के समूह को अन्यत्र जाते हुए देख अपने छात्रों से पूछा-ये देवगण और मानव-समूह किधर जा रहा है ? छात्रों ने कहा- “यहाँ महावीर नाम के सर्वज्ञ पुरुष आये हुए हैं। उनकी वाणी को सुनने के लिये ही ये सभी जा रहे हैं।" इन्द्रभूति को अपने रहते हुए किसी की यह महिमा सह्य नहीं