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आगम के अनमोल रत्न
भ्राता प्रगाढ़ स्नेह के साथ भरत के तीन खण्ड पर शासन करने लगे।
दत्तवासुदेव ने ५६ हजार वर्ष तक अनेक पापों का उर्जन किया और भरकर अन्त में पांचवों नरक में उत्पन्न हुए।
भाई की मृत्यु का नन्दन वलदेव को बड़ा आघात लगा । लम्बे समय तक वे भाई के वियोग में संतप्त रहे । अन्त में मुनि के पास दीक्षा ग्रहण कर घातीकर्मों को नष्ट कर उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया
और ६५ हजार वर्ष की अवस्था में मुक्त हुए । ये वासुदेव और बलदेव भगवान अरनाथ के तीर्थ में हुए।
८. लक्ष्मणवासुदेव और रामबलदेव साकेत नगरी में अनरण्य नाम का राजा राज्य करता था । उसकी रानी का नाम पृथ्वीदेवी था । पृथ्वीदेवी के उदर से अनन्तरथ और दशरथ नामके दो पुत्र हुए।
राजा अनन्तरथ ने अपने छोटे पुत्र दशरथ को राज्यगद्दी पर बिठाकर अपने बड़े पुत्र अनन्तरथ के साथ दीक्षा ले ली। समय पाकर अनरण्य मुनि मोक्ष में गये और अनन्तरथ मुनि तीन तपस्या करते हुए पृथ्वी पर विहार करने लगे ।
दशरथ बाल्यावस्था में ही राजा बन गये । जब वे युवावस्था को प्राप्त हुए और राज्य का कार्य स्वयं संभालने लगे तब उनका ध्यान अपने राज्य की वृद्धि करने की ओर गया । अपने अपूर्व पराक्रम से उन्होंने कई राजाभों को अपने वश में कर लिया ।
____ उस समय कुशस्थल नाम का रमणीय नगर था । वहाँ सुकोशल नाम का राजा राज्य करता था । उसकी रानी का नाम अमृतप्रभा था। कुछ समय के बाद रानी की कुक्षि से एक कन्या का जन्म हुआ। उसका नाम अपराजिता रक्खा गया । रूर लावण्य में वह अद्भुत थी । उसका दूसरा नाम कौशल्या था। अनेक धाइयों के संरक्षण में वह युवा हुई। उसने स्त्रियों की सभी कलाओं में निपुणता प्राप्त कर ली।