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आगम के अनमोल रत्न नाम की दो पट्टरानियाँ थीं । सुदर्शना ने चार महास्वप्न देखकर 'एकपुत्र को जन्म दिया । उसका नाम सुप्रभ रखा गया । कालान्तर में सीतादेवी ने भी सात महास्वप्न देखे और एक सुन्दर नीलवर्णीय पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम पुरुषोत्तम रखा गया । दोनों बालक युवा हुए। दोनों का श्रेष्ठ राजकुमारियों के साथ विवाह हुआ। दोनों भाईयों के बीच प्रगाढ़ स्नेह था । पुरुषोत्तम ने अपने प्रतिशत्रु मधु को मारकर तीन खण्ड पर विजय प्राप्त की। पुरुषोत्तम वासुदेव और सुप्रभ बलदेव हुए। नील वस्त्र से वासुदेव और पीत वस्त्र से बलदेव चन्द्र सूर्य की तरह अत्यन्त सुन्दर लगते थे । पुरुषोत्तम वासुदेव तीसलाख वर्ष की अवस्था में भरकर छठी नरक में गये। भाई की मृत्यु से सुप्रभ बलदेव को अत्यन्त दुःख हुआ। उन्होंने मृगांकुश नाम के मुनि के पास दीक्षा ली और घनघातीको को खपाकर केवलज्ञान प्राप्त किया। ५५ लाख वर्ष की अवस्था में वे मोक्ष को प्राप्त हुए ।
५. पुरुषसिंह वासुदेव और सुदर्शन बलदेव
अश्वपुर नगर में शिव नाम के राजा को दो रानियां थीं । एक का नाम विजया और दूसरी का नाम अंमका । विजया रानी के गर्भ से सुदर्शन बलदेव का और अंमका रानी के गर्भ से पुरुषसिंह वासुदेव का जन्म हुआ। पुरुषसिंह वासुदेव ने निशुम्भ नामक प्रतिशत्रु को मारकर तीनखण्ड पर विजय प्रप्त की । पुरुषसिंह वासुदेव और सुदर्शन बलदेव कहलाये । दोनों भाई अर्धभरतक्षेत्र पर एक छत्र राज्य करने लगे। दस लाख वर्ष के लम्बे काल में पुरुषसिंह वासुदेव ने अनेक पापों का संचय किया और मरकर छठ्ठी नरक में उत्पन्न हुए । भ्रातृ वियोग से दुःखी होकर सुदर्शन वलदेव ने कीतिधर मुनि के पास दीक्षा ग्रहण की और केवलज्ञान प्राप्त किया । कुल १७ लाख वर्ष की अवस्था भोगकर सुदर्शन बलदेव ने मोक्ष प्राप्त किया । सुदर्शन बलदेव धर्मनाथ तीर्थङ्कर के समय में हुए थे।