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आगम के अनमोल रत्न
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___२. द्विपृष्ट वासुदेव और विजय बलदेव
सौराष्ट्र देश की द्वारिका नगरी में ब्रह्म नाम के प्रतापी राजा राज्य करते थे। उनकी उमा और सुभद्रा नाम की दो रानियाँ थी। सुभद्रा रानी ने चौदह महास्वप्न में से चार और उमा रानी ने सात महास्वप्न देखे । दोनों रानियाँ गर्भवती हुई । गर्भकाल के पूर्ण होने पर दोनों ने एक एक प्रतापी पुत्र को जन्म दिया । महारानी सुभद्रा से उत्पन्न बालक का नाम विजयकुमार रखा गया और उमा से उत्पन्न वालक का नाम 'द्विपृष्ट' । दोनों युवा हुए । उनका श्रेष्ठ राजकन्याभों के साथ विवाह किया गया।
द्विपृष्ट कुमार ने तारक नाम के प्रति वासुदेव को मारकर वासुदेव पद प्राप्त किया और विजयकुमार ने बलदेव का । ये दोनों भरत के तीन खण्ड पर शासन करने लगे। कुल ७४ लाख वर्ष की आयु भोगकर द्विपृष्ट मरकर छठी नरक में उत्पन्न हुए। भाई की मृत्यु से विजय बलदेव को वैराग्य उत्पन्न हो गया। उन्होंने विजयसूरि के पास दीक्षा ग्रहण की । कुल ७५ लाख वर्ष की आयु समाप्त कर उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया । ये भगवान वासुपूज्य के शासन काल में हुए थे ।
३. स्वयंभू वासुदेव और भद्र बलदेव भारतवर्ष में द्वारिका नाम की नगरी थी वहाँ रुद्र नाम के प्रतापी राजा राज्य करते थे । उसके रूप एव सौंदर्य से भरपूर सुप्रभा और पृथ्वी नाम की दो रानियाँ थीं। सुप्रभा रानी के गर्भ में नन्दिसुमित्र का जीव अनुत्तर विमान से चवकर अवतरित हुआ। महारानी ने चार महास्वप्न देखे । जन्म होनेपर पुत्र का नाम भद्र रखा ।
धनमित्र का जीव महारानी पृथ्वी के गर्भ में अच्युत कल्प से चवकर सात महास्वप्न के साथ आया । नौमास और साढ़े सात रात्रि