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वासुदेव और बलदेव
के वीतने पर महारानी ने श्यामवर्णीय सुन्दर पुत्र को जन्म दिया । बालक का नाम स्वयंभू रखा गया । दोनों बालक दूज के चाँद की तरह बढ़ने लगे।
भरतक्षेत्र में नन्दनपुर नाम के नगर में समकेशरी राजा की सुन्दरी नाम की रानी से मेरक नाम का प्रतापी पुत्र हुआ । युवा होने पर मेरक ने भरतार्द्ध पर विजय प्राप्त की और अतुल वल पराक्रम से प्रतिवासुदेव का पद प्राप्त किया ।
इधर स्वयंभू और भद्र भी तेजस्वी और वीर बालक थे । इन वालकों की पराक्रम गाथा सुनकर मेरक ने सोचा-कही ये ही वालक मेरे नाश के कारण न बन जाय । उसने अपनी समस्त सेना के साथ रुद्र राजा पर आक्रमण कर दिया । स्वयंभू और भद्र ने बड़ी वीरता के साथ मेरक की वीर सेना को मार भगाया । अपनी सेना को हतोत्साह देखकर मेरक स्वयं लड़ने के लिये आगे आया । उसने स्वयंभू को मारने के लिये चक्र छोड़ा। चक्र स्वयंभू के पास आया। स्वयंभू ने उसी चक्र की सहायता से मेरक को मार डाला । स्वयंभू और भद्र विजयी हुए । देवों ने स्वयंभू को वासुदेव और भद्र को वलदेव घोषित किया । वासुदेव पद प्राप्त कर स्वयंभू राज्य एवं भोग में प्रस्त हो गये । अन्त में आरंभ और परिग्रह में आसक्त स्वयंभू वासुदेव साठ लाख की आयु पूर्ण कर मरे और छठी नरक में उत्पन्न हुए ।
अपने भाई की मृत्यु से भद्र वलदेव को अत्यन्त दु.ख हुमा । अन्ततः संसार से विरक्त हो कर भद्र बलदेव ने मुनिचन्द्र मुनि के पास दीक्षा ग्रहण की। ६५ लाख वर्ष की आयु समाप्त कर वे परम पद को प्राप्त हुए । ये वासुदेव और वलदेव विमलनाथ भगवान के शासन में हुए।
४. पुरुषोत्तम वासुदेव और सुप्रभ बलदेव चौदहवे तीर्थङ्कर अनन्तनाथ के शासन काल में द्वारिका नगरी में सोम नाम के प्रतापी राजा राज्य करते थे। उनकी सुदर्शना और सीता