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आगम के अनमोल रत्न
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और भिक्षा मांगने लगा । भिक्षा देने के लिये जब सोता बाहर निकली तो रावण ने उन्हें उठा लिया और पुष्पक विमान में बिठाकर लंका ले गया । वहाँ जाकर सीता को अशोक वाटिका में रख दिया। अब कामी रावण सीता को अनेक प्रकार के प्रलोभन देकर अपने जाल में फंसाने की की चेष्टा करने लगा । रावण ने साम, दाम, दण्ड और भेद इन चारों नीतियों का प्रयोग सीता पर कर लिया किन्तु उसकी एक भी युक्ति सफल नहीं हुई । सीता को अपने अस्तित्व में मेरु के समान निश्चल और दृढ़ समझकर रावण निराश हो गया। अब वह रात दिन सीता को अपने वश में करने का उपाय सोचने लगा | अपने पति की यह दशा देखकर मन्दोदरी को बहुत दुःख हुआ । वह कहने लगी- हे स्वामिन् ! सीता का हरण करके आपने बहुत अनुचित काम किया 1, आप जैसे उत्तम पुरुषों को यह कार्य शोभा नहीं देता । सीता महासती है । वह मन से भी परपुरुषों की कामना नहीं करती । सतियों को कष्ट देना ठीक नहीं है अतः आप इस दुष्ट वासना को हृदय से निकाल दीजिए और शीघ्र ही सीता को वापस राम के पास पहुँचा दीजिये । रावण के छोटे भाई विभीषण ने भी रावण को बहुत कुछ समझाया किन्तु रावण तो कामान्ध वना हुआ था । उसने किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया |
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राम लक्ष्मण जब वापस लौट कर झोपड़ी में आये तो उन्होंने वहाँ सीता को न देखा, इससे उन्हें बहुत दुख हुआ । वे इधर उधर सीता की खोज करने लगे किन्तु सीता का कहीं पता न लगा । सीता की खोज में घूमते हुए राम लक्ष्मण की सुग्रीव से भेंट होगई। सीता की खोज के लिये सुप्रीव ने भी चारों दिशाओं में अपने दूत भेजे । हनुमान द्वारा सीता की खबर पाकर राम, लक्ष्मण और सुग्रीव बहुत बड़ी सेना लेकर लंका को गये । अपनी सेना को सज्जित कर रावण भी युद्ध के लिये तैयार हुआ । दोनों तरफ की सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ। कई वीर योद्धा मारे गये । अन्त में वासुदेव लक्ष्मण द्वारा प्रतिवासुदेव रावण मारा गया । राम की विजय हुई | रामने लंका का