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आगम के अनमोल रत्न
में ईर्ष्या उत्पन्न हुई। वे उस पर कोई कलंक चढ़ाना चाहती थीं अतः एक दिन कपटपूर्वक उन्होंने सीता से पूछा-सखि ! तुम लंका में बहुत समय तक रही थीं और रावण को भी देखा था। हमें भी बताओ कि रावण का रूप कैसा था ? सीता की प्रकृति सरल थी। उसने कहाबहिनो! मैने रावण का रूप नहीं देखा किन्तु कभी कभी मुझे धमकाने के लिये वह अशोक वाटिका में भाया करता था इसलिये उसके पैर मैने देखे हैं। सौतों ने कहा-अच्छा, उसके पैर ही चित्रित करके हमें दिखाओ। उन्हें देखने की हमें बहुत इच्छा हो रही है। सरल प्रकृति वाली सीता उनके कपटभाव को न जान सकी । सरलभाव से उसने रावण के दोनों पैर चित्रित कर दिये । सौतों ने उन्हें अपने पास रख लिया। अब वे अपनी इच्छा को पूरी करने का उचित अवसर देखने लगी। एक समय राम अकेले बैठे हुए थे। तब सब सौतें मिलकर उनके पास गई । चित्र दिखाकर वे कहने लगीं-स्वामिन् ! जिस सीता को आप पतिव्रता और सती कहते हैं उसके चरित्र पर जरा गौर कीजिए। वह अब भी रावण की ही इच्छा करती है। वह नित्य प्रति इन चरणों के दर्शन करती है। सौतों की बात सुन कर राम विचार में पड़ गये किन्तु किसी अनबन के कारण सौतों ने यह बात बनाई होगी' यह सोचकर राम ने उनकी बातों की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया। अपना प्रयास असफल होते देख सौतों की ईर्ष्या
और भी बढ़ गयी। उन्होंने अपनी दासियों द्वारा लोगों में धीरे-धीरे यह बात फैलानी शुरू की कि सीता का चरित्र शुद्ध नहीं है। इससे लोग भी सीता को सकलंक समझने लगे।
. एक रात्रि के समय राम सादा वेष पहनकर लोगों का सुख दुःख जानने के लिये नगर में निकले। घूमते हुए वे एक धोवी के घर के पास पहुँचे। धोबिन रात में देरी से आई थी। वह दरवाजा खटखटा रही थी। धोबी उसे बुरी तरह से डांट रहा था और कह रहा था कि मैं राम थोड़े ही हूँ जिन्होंने रावण के पास रही हुई सीता को