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- यासुदेव और बलदेव
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राम के राज्याभिषेक के तैयारी होने लगी । रानी कैकयी की दासी मन्धरा से यह सहन नहीं हो सका । उसने कैकयी को उक्साया और संग्राम के समय राजा दशरथ द्वारा दिये गये दो वर मांगने के लिये प्रेरित किया । दासी की बातों में आकर कैकयी ने राजा से दो वर मागे-मेरे पुत्र भरत को राजगद्दी मिले और राम को चौदह वर्ष का वनवास । अपने वचन का पालन करने के लिये राजा ने उसके दोनों वरदान स्वीकार कर लिये । पिता की आज्ञा से राम बन जाने के लिये तैयार हुए । ज्व यह बात सीता को मालूम हुई तो वह भी राम के साथ जाने को तैयार हो गई । रानी कौशल्या के पास आकर बन जाने की अनुमति. मागने लगी। कौशल्या ने कहा -पुत्रि ! राम पिता की आज्ञा से वन जारहे है । वह वीर पुरुष हैं । उनके लिये कुछ कठिन नहीं है किन्तु तू बहुत कोमलांगी है । तू सदा महलों में रही है । वन में शीत ताप आदि तथा पैदल चलने के कष्ट को तू कैसे सहन कर सकेगी 2 सीता ने कहा-माताजी ! आपका कहना ठीक है किन्तु आपका आर्शीवाद मेरी सब कठिनाइयों को दूर करेगा। जिस प्रकार रोहिनी चन्द्रमा का एवं छाया पुरुष का अनुसरण करती है उसी प्रकार पतिव्रता स्त्रियों को अपने पति का अनुसरण करना चाहिये। पति के सुख में सुखी और पति के दुःख में दुःखी रहना उनका परम धर्म है। इस प्रकार विनयपूर्वक निवेदन कर सीता ने कौशल्या से वन जाने की आजा प्राप्त कर ली।
राम के वन जाने की बात सुनकर लक्ष्मण भी राम के साथ वन जाने को तैयार हो गये । इसके बाद सीता और लक्ष्मण सहित राम वन की ओर रवाना हो गये।
एक समय एक सघन वन में एक झोपड़ी बनाकर सीता, लक्ष्मण और राम ठहरे हुए थे । सीता के अदभुत रूप लावण्य की शोभा को सुनकर कामातुर वना हुआ रावण संन्यासी का वेष बनाकर वहाँ आया। राम और लक्ष्मण के बाहर चले जाने पर वह झोपड़ी के पास आया