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तीर्थङ्कर चरित्र
२४३ कहकर बोला-भगवन् ! गोशालक अपने तप तेज से किसी को जलाकर भस्म करने में समर्थ है ?
भगवान ने कहा-आनन्द ! अपने तप तेज से गोशालक किसी को भी जलाने का सामर्थ्य रखता है किन्तु वह अनन्तशक्तिशाली नहीं है । अर्हन्त को जलाकर भस्म करने में वह समर्थ नहीं है । कारण कि जितना तपोबल गोशालक में है उससे भी अनन्तगुना तपोबल निर्ग्रन्थअनगारों में है तो फिर अर्हन् के तपोवल के लिये कहना ही क्या ! किन्तु अनगार स्थविर एवं अर्हत् क्षमाशील होने से वे अपनी तपोलब्धि का उपयोग नहीं करते।
आनन्द | गौतमादि स्थविरों को इस बात की सूचना कर देना कि गोशालक इधर आ रहा है। इस समय वह द्वेष और म्लेच्छभाव से भरा हुआ है इसलिये वह कुछ भी कहे. कुछ भी करे पर तुम्हें उसका प्रतिवाद नहीं करना चाहिये यहाँ तक कि कोई भी श्रमण उसके साथ धार्मिक चर्चा तक न करे ।।
स्थविर मानन्द ने भगवान का सन्देश गौतमादि प्रमुख मुनियों को सुना दिया।
इधर ये बातें चल ही रही थीं कि उधर गोशालक आजीवक संघ के साथ भगवान के समीप पहुँच गया और बोला
"हे आयुष्मान काश्यप ! तुमने ठीक कहा है कि मंखलिपुत्र गोशालक मेरा शिष्य है किन्तु तुम्हारा शिष्य मंखलिपुत्र कभी का मर कर देवलोक पहुँच गया है। मै तुम्हारा शिष्य मंखलिपुत्र गोशालक नहीं किन्तु गोशालक शरीर प्रविष्ट उदायी कुडियायन नामक धर्मप्रवर्तक हूँ। यह मेरा सातवां शरीरान्तर प्रवेश है। मै गोशालक नहीं किन्तु गोशालक से भिन्न भात्मा हूँ।
भगवान महावीर ने कहा-गोशालक ! तू अपने आपको छिपाने का प्रयत्न न कर । यह आत्मगोपन तेरे लिये उचित नहीं। तू वही मखलिपुत्र गोशालक है जो मेरा शिष्य होकर रहा था।