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आगम के अनमोल रत्न
४. श्री सुवाहुस्वामी जम्बूद्वीप के पश्चिम महाविदेह में वपु नाम के विजय में वीतशोका नाम की नगरी में निषड नाम के न्याय सम्पन्न राजा राज्य करते थे। उनकी मुख्य रानी का नाम सुनन्दा था । धानर लांछन से युक्त भगवान सुबाहु ने सुनन्दा महारानी के गर्भ से जन्म ग्रहण किया । युवावस्था में भापका 'किंपुरुषा' नाम की सुन्दर राजकन्या के साथ विवाह हुआ । तिरासी लाख पूर्व तक संसारी भोगों को भोग कर आपने प्रव्रज्या ग्रहण की। कठोर तप कर चार घनघाती कर्मों का क्षय कर केवलज्ञान-केवलदर्शन प्राप्त किया । चार तीर्थों की स्थापना कर आपने तीर्थकर पद प्राप्त किया । आप की कुल आयु चौरासी लाख पूर्व की है। एकलाख पूर्व तक चारित्र का पालन कर आप निर्वाण पद प्राप्त करेंगे । वर्तमान में आप वपु विजय में तीर्थ प्रवर्तन करते हुए भव्य प्राणियों का उद्धार कर रहे हैं।
५.श्री सुजातस्वामी धातकीखण्ड द्वीप के पूर्व महाविदेह में पुष्कलावती विजय में पुण्डरीकिणी नाम की अतीव रम्य नगरी है । उस नगर में देवसेन नाम के परम प्रतापी राजा राज्य करते थे। उनकी सर्वगुण सम्पन्ना देवसेना नाम की रानी थी। उसकी कुक्षि से सुजात स्वामी का जन्म हुआ। युवावस्था में भापका विवाह जयसेना रानी के साथ हुआ । सूर्य के लांछन वाले सुजातकुमार ने तिरासी लाख पूर्व की भायु में प्रव्रज्या ग्रहण की और घनघाती कर्मों का क्षय कर केवलज्ञान प्राप्त किया । आपकी ऊँचाई पाँचसौ धनुष है । वर्ण सुवर्ण जैसा है । एक लाख पूर्व तक तीर्थप्रवर्तन कर कुल चौरासी लाख पूर्व की भायु में सिद्ध पद प्राप्त करेंगे । आप वर्तमान में धातकी खण्ड के पुष्कलावती विजय में भव्य प्राणियों का कल्याण कर रहे हैं ।