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आगम के अनमोल रत्न
सनत्कुमार मुनि ५०००० वर्ष कुमारावस्था में, ५०००० वर्ष माण्डलिक अवस्था में, १०००० दिग्विजय में, ९०००० वर्ष चक्रवर्ती पद में एवं १००००० वर्ष संयम में इस प्रकार कुल ३००००० वर्ष का आयु पूर्ण करके मोक्ष में गये । ये ४१॥ धनुष ऊँचे थे ।
५- चक्रवर्ती शान्तिनाथ के लिये देखिए १६वें तीर्थकर भगवान शान्तिनाथ ।पृ०८३ ६-वे चक्रवर्ती कुन्थुनाथ के लिए देखिये भगवान कुन्थुनाथ ।'
पृ०१०७ ७-वे चक्रवर्ती अरनाथ के लिये देखिये भगवान भरनाथ। पृ०१०९
८. मुभूम चक्रवती जमदग्नि नाम के एक तापस ने नेमिककोष्टक के राजा जितशत्रु की कन्या रेणुका के साथ विवाह किया। ऋतुकाल होनेपर जमदग्नि ने रेणुका से कहा- मै तेरे लिये एक ऐसे चरु की साधना करूंगा कि जिससे तेरे गर्भ से ऐसा पुत्र उत्पन्न हो, जो सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण हो ।" इस पर रेणुका ने कहा-हस्तिनापुर के राजा अनन्तवीर्य की रानी मेरी बहिन होती है उसके लिए भी आप ऐसा चरु साधे कि जिससे उसके गर्भ से एक सर्वश्रेष्ठ क्षत्रिय पुत्र का जन्म हो । जमदग्नि ने दोनों चरु की साधना की और दोनों चरु रेणुका को दे दिये । रेणुका ने विचार किया-"मै क्षत्रियानी होते हुए भी तापस जमदग्नि के साथ रहकर बनवासी बन गई हूँ। ब्राह्मण चरु खाने से वनवासी ब्राह्मण ही मेरे उदर से पैदा होगा इससे अच्छा यही है कि मै एक श्रेष्ठ क्षत्रियपुत्र को जन्म हूँ।" यह सोच उसने क्षत्रिय चरु खा लिया और अपनी बहन को ब्राह्मण चर दे दिया। दोनों को एक एक पुत्र हुआ। रेणुका ने अपने पुत्र का नाम राम और उसकी बहन ने अपने पुत्र का नाम कृतवीर्य रखा । एक विद्याधर ने प्रसन्न होकर राम को परशु विद्या दी। राम ने उसे सिद्ध की। वह विद्या-सिद्ध परशु सदैव अपने पास रखता था अतएव उसे सभी लोग परशुराम कहने लगे ।