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बारह चक्रवर्ती
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१-नैसर्प निधि-नये ग्रामों का बसाना, पुराने ग्रामों को व्यवस्थित करना, खानों का प्रबन्ध तथा सेना के पड़ाव का प्रबन्ध नैसर्प निधि से होता है। . २-पाण्डक निधि-गिनी जानी वाली वस्तु, तथा मापी जानी वाली वस्तुओं का प्रवन्ध करने का काम पाण्डुक निधि में होता है।
३-पिंगल निधि-आभूषणों का प्रबन्ध करने वाली निधि । ४-सर्वरत्न निधि-चौदह रत्न का प्रवन्ध करने वाली निधि । ५-महापद्मनिधि-वस्त्र का प्रबन्ध करने वाली निधि ।
६-काल निधि-काल ज्ञान, शिल्प और कर्म, कृषि आदि का ज्ञान कराने वाली।
७-महाकाल निधि-खानों से सोना चांदी रत्न आदि को इकट्ठी करने वाली निधि ।
८-मानवक निधि-चार प्रकार की दण्ड नीति मानवक निधि में होती है।
९-शंख निधि-नृत्य, गान, नाटक, छंद-रचना, आदि साहित्य की रचना करने वाली निधि ।
ये निधियाँ चक्रपर प्रतिष्ठित हैं । इनकी आठयोजन ऊँचाई नौ योजन चौड़ाई, तथा वारह योजन लम्बाई होती है। ये पेटी के आकार की होती है । गंगा नदी का मुँह इनका स्थान है। इनके किवाड़ वैडूर्यमणि के बने होते हैं । इन्हीं नामों वाले निधियों के अधिटाता त्रायस्त्रिंश देव हैं।
चक्रवर्तियों का भोजन १ चक्रवतियों का भोजन कल्याण भोजन कहलाता है। उसके विषय में ऐसा कथन आता है-रोग रहित एक लाख गायों का दूध निकाल कर वह दूध पचास हजार गायों को पिला दिया जाय। फिर उन पचास हजार गायों का दूध निकाल कर पचीस हजार गायों को पिला दिया जाय। इस प्रकार क्रमशः करते हुए अन्त में वह दूध एक गाय को