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आगम के अनमोल रत्न
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माम स्थिति
अवगाहना ३ मघवान् ५ लाख वर्ष
१२।। धनुष ४ सनत्कुमार ३ लाख वर्ष
४१॥ , ५ शान्तिनाथ ६ कुन्थुनाथ
९५ हजार वर्ण ७ अरनाथ
३० " ८ सुभूम
२८ ॥ ९ महापद्म १० हरिषेण १० , ,
१५ ॥ ११ जय
१२ ॥ १० ब्रह्मदत्त
७०० वर्ष चक्रवत्तियां की विजय पद्धति
चक्रवर्ती पहले मध्य खण्ड को साधता है, फिर सेनानीरत्न द्वारा सिन्धुखण्ड' को जीतता है । इसके बाद गुहानुप्रवेश नामक रत्न से वैतात्य पर्वत का उल्लंघन कर उधर के मध्यखण्ड को विजय करता है। बाद में सिन्धुखण्ड और गंगा खण्ड को साधकर अपनी राजधानी में लौट आता है। गंगा खण्ड और सिन्धु खण्ड की देवी गंगा और सिन्धु देवी चक्रवर्तियों की सेविका बनकर रहती हैं । चक्रवर्तियों की गति--
वारह चक्रवर्तियों में से दस चकवर्ती मोक्ष में गये हैं। सुभूम और ब्रह्मदत्त दोनों चक्रवर्ती कामभोगों में फंसे रहने के कारण सातवीं नरक में गए।
राज्यलक्ष्मी और कामभोग को छोड़कर जो चक्रवर्ती दीक्षा लेते हैं वे उसी भव में मोक्ष में या श्रेष्ठ देवलोक में भी जाते हैं। जो देवलोक में जाते हैं वे अर्द्धपुद्गल परावर्त के बाद अवश्य मोक्ष में जाते हैं। चक्रवर्तियों के नवनिधान (खजाना)
चक्रवर्ती का प्रत्येक निधान नौ योजन विस्तार वाला होता है । चक्रवर्ती की सारी सम्पत्ति इन नौ निधानों में विभक्त है। ये सभी निधान देवताओं द्वारा अधिष्ठित हैं। वे इस प्रकार हैं