________________
वारह चक्रवर्ती
३१३ हैं, किन्तु महात्माओं के दर्शन करना चाहिए और यह जानना चाहिये कि वे कैसे धर्म का उपदेश देते हैं। ___ मंत्री ने जाना मंजूर करके कहा, भाप वहाँ मध्यस्थ होकर चैठियेगा । मैं उन्हें शास्त्रार्थ में जीतकर निरुत्तर कर दूंगा। ____राजा और मंत्री सामन्तों के साथ उनके पास गए । वहाँ धर्म देशना देते हुए आचार्य सुव्रत को देखा । प्रगाम करके वे उचित स्थान में पर बैठ गये । अकस्मात् नमुवि मत्रो ने आचार्य को पराजित करने के उद्देश्य से अबहेलना-भरे शब्दों में प्रश्न पूछने शुरू किए । आचार्य के एक लघु शिष्य ने उन सब का उत्तर देकर मंत्री को चुप कर दिया । सभा के भीतर इस प्रकार निरुत्तर होने पर नमुचि को बहुत चुरा लगा । साधुओं पर द्वेष करता हुआ वह रात को तलवार निकाल कर उन्हें मारने आया । शासनदेव ने उसे स्तम्भित कर दिया । प्रातः काल राजा और नगर जन इस आश्चर्य को देखकर चकित हो गये । मुनि के समीप आकर धर्म कथा सुनने के बाद उन्होंने जिनधर्म को अंगीकार कर लिया ।
नमुचि इस अपमान से दुःखी हो कर हस्तिनापुर में चला गया। वहाँ महापद्म राजा का मंत्री बन गया । उसी समय सिंहबल नाम का दुष्ट सामन्त देश में उपद्रव मचा रहा था । विषम दुर्ग के कारण उसे पकड़ना बड़ा कठिन हो गया। राजा महापद्र ने नमुचि से पूछा-सिंहवल को गिरफ्तार करने का कोई उपाय जानते हो ?
नमुचि ने उत्तर दिया-हा जानता हूँ। उसने वहाँ जाकर अपनी कुशलता से सिंहबल के दुर्ग को तोड़ दिया और उसे गिरफ्तार कर लिया । राजा ने संतुष्ट होकर उसे वर मांगने को कहा । मत्री ने उत्तर दिया-जव मै मांगूं तप देना ।
युवराज महापद्म किसी कारण से नाराज होकर भदवी में चला गया । वहाँ एक आश्रम में ठहरा उसी समय चंगा के राजा जनमेजय