________________
w
wwwwww
३१२
आगम के अनमोल रत्न ९. महापद्म चक्रवर्ती कुरुदेश में हस्तिनापुर नाम वा नगर था । वहाँ पद्मोत्तर राजा राज्य करता था। उसकी 'ज्वाला' नाम की रानी थी। एक बार रात के अन्तिम भाग में उसने अपनी गोद में भाते हुए सिंह का स्वप्न देखा प्रतापी पुत्र की उत्पत्ति रूप स्वप्न के फल को जानकर उसे बहुत हर्ष हुआ।
समय पूरा होने पर उसने देवकुमार के सदृश पुत्र को जन्म दिया। वड़ी धूम धाम से पुत्र जन्मोत्सव मनाया । शुभ मुहूर्त में वालक का नाम विष्णुकुमार रखा गया । धीरे धीरे वृद्धि पाता हुआ वह युवावस्था को प्राप्त हुभा ।
उसके बाद किसी समय- प्रजापाल राजा का जीव अच्युत देवलोक से चवकर ज्वालारानी के गर्भ में उत्पन्न हुआ । उस समय महारानी ने रात्रि के अन्तिम प्रहर में चौदह स्वप्न देखे । उचित समय पर महापद्म नामक चक्रवर्ती पुत्र उत्पन्न हुआ। धीरे धीरे वह भी युवावस्था को प्राप्त हुआ । चक्रवर्ती के लक्षण जानकर पिता ने उसको युवराज वनाया ।
उसी समय उज्जैनी नगरी में श्रीधर्म नाम का राजा राज्य करता था। उसके नमुची नाम का मंत्री था। एक बार मुनिसुव्रतस्वामी के शिष्य सुव्रताचार्य अनेक मुनियों के साथ विचरते हुए वहाँ पधारे। नगरी के लोग सजधज कर आने लगे । राजा और मंत्री अपने महल पर चढ़कर उन्हें देखने लगे । राजा ने नमुचि से पूछा--क्या लोग अकाल यात्रा के लिये जा रहे है ? नमुचि ने कहा, “महाराज ! आज सुवह मैने सुना था कि उद्यान में कुछ श्रमण आए है" राजा ने कहा"चलो हम भी चलें ।" मंत्री ने उत्तर दिया-वहाँ आप किसलिये जाना चाहते हैं ? धर्म सुनने की इच्छा से तो वहाँ आना ठीक नहीं है, क्योंकि वेद विहित सर्वसम्मत धर्म का उपदेश तो हम ही देते हैं । राजा ने कहा, यह ठीक है कि आप धर्म का उपदेश देते