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आगम के अनमोल रत्न
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का काल नरेन्द्र के साथ युद्ध हुआ । जनमेजय हारकर भाग निकला उसका परिवार भी इधर उधर भाग गया ।
जन्मेजय की नागवती नामक पुत्री से उत्पन्न हुई उसकी दौहत्री मदनावली भागती हुई उसी आश्रम में पहुँची। वहाँ महापद्म और भदनावली में एक दूसरे को देखते ही स्नेह हो गया । कुछ दिनों बाद महापद्म आश्रम से रवाना होकर सिन्धुनद' नामक नगर में पहुँचा । वहाँ उद्यानिका महोत्सव मनाया जा रहा था । इतने में एक मतवाला हाथी वन्धन तोड़कर भाग निकला। सभी स्त्रीपुरुष भयभीत होकर इधर उधर दौड़ने लगे । महापद्म ने उसे पकड़कर स्तंभ से बाँध दिया । यह बात वहां के राजा को मालम पड़ी । उसने सारा हाल जानकर उसके साथ १०० कन्याओं का विवाह कर दिया किन्तु महापद्म के मनमें मदनावती बसी हुई थी।
एक बार वह रात्रि में सुख पूर्वक सोया हुआ था उसी समय कोई विद्याधरी उसे उठा ले गई । नींद खुलने पर उसने अपहरण का कारण बता दिया और उसे वैतात्य पर्वत पर बसे हुए सूरोदय नगर में ले गई । वहाँ इन्द्रधनुष नाम के विद्याधर राजा को सौंप दिया । इन्द्रधनुष ने श्रीकान्ता नामक भार्या से उत्पन्न हुई अपनी पुत्री जयकान्ता का विवाह उसके साथ कर दिया । जयकान्ता के विवाह से उसके ममेरे भाई गङ्गाधर और महीधर महापद्म पर कुपित हो गये । उन्हें युद्ध में जीतकर महापद्म विद्याधरों का राजा बन गया । वैताढ्य पर्वत की दोनों श्रेणियों पर उसका राज्य हो गया । फिर उसी आश्रम में गया । वहाँ उसने मदनावली से विवाह कर दिया ।
विद्याधरों का राजा बनकर महापद्म विशाल ऋद्धि के साथ हस्तिनापुर में प्रविष्ट हुभा और वहाँ जाकर माता-पिता तथा भाई विष्णु कुमार को नमस्कार किया। उसके आगमन से सभी को अपार हर्ण हुआ ।
कुछ दिनों के बाद सुव्रताचार्य हरितानापुर में पधारे । विष्णु कुमार और महापद्म के साथ पद्मोत्तर राजा वन्दना करने गये । भक्तिपूर्वक