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तीर्थकर चरित्र
२५९ ९. सुरप्रभस्वामी धातकीखण्ड के पूर्व महाविदेह में पुष्कलावती विजय में पुंडरगिणी नगरी में विजय नाम का राजा राज्य करता था । उसकी विजयादेवी नाम की रानी थी। रात्रि के समय विजयादेवी ने १४ महास्वप्न देखे । उसी दिन सुरप्रभ महारानी के गर्भ में आये । यथा समय चन्द्र-लांछन से युक्त आपने जन्म ग्रहण किया । ६४ इन्द्रों एवं देव देवियों ने आपका जन्मोत्सव किया । युवावस्था में आपका विवाह नन्दसेना नाम की सुन्दर कन्या के साथ हुमा। तिरासी लाख पूर्व की अवस्था में मापने वार्षिक दान देकर दीक्षा ग्रहण की और धनघाती कर्मों का क्षय करके केवलज्ञान और दर्शन प्राप्त किया। कुल ८४ लाख पूर्व की अवस्था में आप निर्वाण पद प्राप्त करेंगे ।
इस समय भाप भव्य प्राणियों को उपदेश देते हुए धातकीखण्ड द्वीप के पूर्व महाविदेह में पुष्कलावती विजय में विचरण कर रहे हैं।
१०. विशालप्रभस्वामी धातकी खण्ड द्वीप में पश्चिम महाविदेह में वपु विजय में विजयापुरी नाम की नगरी है । वहाँ सर्वगुण सम्पन्न नभराय नाम का राजा राज्य करता था। उसकी अत्यन्त रूपवती भद्रा नाम की रानी थी। जब विशालप्रभ महारानी के गर्भ में आये थे तव रानी ने चौदह महास्वप्न देखे । यथा समय प्रभु ने जन्म ग्रहण किया । आपका वर्ण सुवर्ण जैसा व शरीर सूर्य के लाछन से युक्त है । आपकी काया की ऊँचाई पांच सौ धनुष्य की है। आपका युवावस्था में विमलादेवी के साथ विवाह हुआ । जब आप तिरासी लाख पूर्व वर्ष के हुए तब आपने वार्षिकदान देकर दीक्षा ग्रहण को। घनघाती कर्मो का क्षय कर आपने केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त किया । एक लाख पूर्व तक चारित्रावस्था में रहने के बाद कुल ८४ लाख पूर्व की अवस्था में आप निर्वाण पद प्राप्त करेंगे । इस समय आप अपने द्वारा सस्थापित चारों तीर्थों को पावन उपदेश देते हुए वपु विजय में विवरण कर रहे हैं।