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तीर्थङ्कर चरित्र
१३. चन्द्रबाहुस्वामी पुष्कराई द्वीप के पूर्व महाविदेहमें पुष्कलावती विजय में पुण्डरीगिनी नाम की नगरी में देवानन्द नाम के राजा राज्य करते थे। उनकी शीलवती रानी का नाम रेणुका था । चौदह महास्वप्नों को सूचित कर चन्द्रबाहु स्वामी ने रेणुका रानी के गर्भ से जन्म ग्रहण किया। चौंसठ इन्द्रों ने तथा देव देवियों ने भगवान का जन्मोत्सव किया । भगवान के कांचनवर्णी देह पर पद्मकमल का चिन्ह अत्यन्त सुशोभित हो रहा है। पांचसौ धनुष की ऊँचाई वाले चन्द्रबाहु का विवाह सुगन्धा रानी के साथ हुआ। तिरासी लाख पूर्व की अवस्था में आपने गृहत्याग कर एवं वार्षिकदान देकर प्रवज्या ग्रहण की तथा धनघाती कर्मों को खपाकर केवलज्ञान प्राप्त किया । आप वर्तमान में चारों तीर्थों का नेतृत्व करते हुए भव्य प्राणियों का पुष्कलावती विजय. में कल्याण कर रहे हैं। आपकी आयु ८४ लाख पूर्व की है।
१४. भुजगस्वामी पुष्करवर द्वीपार्द्ध के पश्चिम विदेहक्षेत्र में वपुविजय में विजयापुरी नाम की एक विशाल एवं समृद्ध नगरी थी। महावल नरेश वहाँ के शासक थे। वे जिनेश्वर भगवान की - उपासना करनेवाले थे। वे न्यायप्रिय शासक थे। उनकी पटरानी का नाम सुसीमादेवी था । वह सुलक्षणी और लक्ष्मी के समान सौभाग्यशालिनी थी.. शुभनक्षत्र के योग में महारानी सुसीमादेवी ने गर्भ धारण किया । उत्तम गर्भ के प्रभाव से महारानी ने चौदह महास्वप्न देखे । गर्भकाल के पूर्ण होने पर महारानी ने पद्म चिन्ह से युक्त सुवर्णवर्णी सुन्दर पुत्र को, जन्म दिया । देव-देवियों और इन्द्रों ने जन्मोत्सव किया । बाल भगवान का नाम भुजङ्गकुमार रखा । यौवन वय प्राप्त होने पर गन्धसेना आदि अनेक राजकुमारियों के साथ भुजजकुमार का विवाह हुआ। पिता के द्वारा प्रदत्त राज्य का चिरकाल तक उपभोग कर ८३ लाख पूर्व की अवस्था में वर्षीदान देकर भगवान ने प्रवज्या ग्रहण की । धनधाती कर्मों का क्षयकर भगवान ने केवलज्ञान प्राप्त किया। इस समय भुजङ्गस्वामी भनेक भव्य जीवों को प्रतिबोधित करते हुए पुष्कराई द्वीप के