________________
२९८
आगम के अनमोल रत्न
बाहुबली ने मुठ्ठी उठाई तो इन्द्र ने सोचा बाहुबली बड़े शक्तिशाली व्यक्ति हैं । बाहुबली के प्रहार से भरत जमीन में गड़ जायेंगे और यह चक्रवर्ती पद के लिये लांछन होगा । उन्होंने बाहुबली की मुठ्ठी को ऊपर ही पकड़ लिया और कहा-'बाहुबली ! यह क्या कर रहे हो ! बड़े भाई पर हाथ उठाना क्या तुम्हें शोभा देता है ? तुच्छ राज्य के लिये क्रोध के वशीभूत होकर तुम कितना वडा अनर्थ कर रहे हो इसे सोचो तो सही ।"
बाहुबली की मुट्ठी उठी की उठी रह गई । उनके मन में पश्चात्ताप होने लगा। वे मन में सोचने लगे-"जिस राज्य के लिए इस प्रकार का अनर्थ करना पड़े उस राज्य से क्या लाभ !" यह सोच कर उन्होने संयम लेने का निश्चय किया।
उठाई हुई मुठ्ठी से उन्होंने पंचमुष्टि लोचकर लिया और तप करने के लिये वन में चले गये। वहाँ जाकर ध्यान लगा लिया । अभी तक उनके हृदय से अभिमान दूर नहीं हुआ था। मनमें सोचा-"मेरे छोटे भाइयों ने भगवान के पास पहले से ही दीक्षा ले रक्खी है । अभी मैं भगवान के पास जाऊँगा तो उन भाइयों को नमस्कार करना पड़ेगा। अतः मुझे केवली बनकर ही भगवान के समवशरण में पहुँचना चाहिए।"
यह सोच वे घने जगल में ध्यान करने लगे। निर्जल और निराहार ध्यान करते हुए एक वर्ष बीत गया। सारे शरीर पर लताएँ छागई। पंछियों ने उनके शरीर पर अपने घौसले बना डाले, किन्तु अहंभाव लिये हुए तपस्वी बाहुबली निश्चल ध्यान में लीन ही रहे । - वाहुबली की यह अवस्था देखकर भगवान ऋषभदेव ने उन्हें समझाने के लिये साध्वी ब्राह्मी और सुन्दरी को उनके पास भेजा । दोनों साध्वियों ने लताओं से आच्छादित बाहुबलीजी को खोज निकाला भौर पास में आकर कहने लगीं--