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आगम के अनमोल रत्न उन्हें वास्तव में संसार असार लगने लगा। उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया । उन्होंने अपने पौत्र भगीरथ को राज्य सौंप दिया और भगवान अजितनाथ के पास दीक्षा धारण कर ली। उनके साथ मंत्री सामन्तों ने भी दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा लेकर सगरमुनि आत्म-साधना करने लगे। उन्होंने अपनी कठोरतम साधना से घातीकों को नष्ट कर दिया और केवलज्ञान प्राप्त कर वे मुक्त हो गये । इनकी सर्वायु ७२ लाख पूर्व की एवं ऊँचाई ४५० धनुष थी।
३. मघवान् चक्रवती भरतक्षेत्र में श्रावस्ती नाम की नगरी थी। वहाँ समुद्रविजय नाम के राजा राज्य करते थे। उनकी भद्रा नाम की रानी थी। नरपति राजा का जीव प्रैवेयक विमान से चवकर महारानी भद्रा की कुक्षि में उत्पन्न हुभा । रानी ने चौदह महास्वप्न देखे । गर्भकाल के पूर्ण होने पर महारानी ने उत्तम लक्षणवाले पुत्र को जन्म दिया । बालक का नाम मघवा रखा ।
मघवा युवा हुए। एक बार इनकी आयुधशाला में चक्ररत्न उत्पन्न हुआ। साथ ही अन्य तेरह रत्न भी उत्पन्न हुए । चौदह रत्नों की सहायता से मघवा ने षट्-खण्ड पर विजय प्राप्त की। षदखण्ड जीत कर जब मघवा वापस श्रावस्ती लौटे तो देवताओं ने भापको चक्रवर्ती पद से विभूषित किया। तीन लाख ९० हजार वर्ष तक चक्रवर्ती अवस्था में रहने के बाद मघवा चक्रवर्ती ने प्रवज्या ग्रहण की और केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में गये । [दूसरी मान्यता के अनुसार भघवा चक्रवर्ती मरकर सनत्कुमार देवलोक में महद्धिक देव बने ।
आपने २५ हजार वर्ष कुमारावस्था में, २५ हजार वर्ष मांडलिक अवस्था में, दसहजार वर्ष दिग्विजय में, तीन लाख ९० हजार वर्ष चक्रवर्ती पद में, पचास हजार वर्ष व्रत पालन में व्यतीत किये । आपको कुल आयु ५ लाख वर्ष की और ऊँचाई ४२॥ धनुष थी।
मघवा चक्रवर्ती भगवान वासुपूज्य के तीर्थकाल में हुए थे।