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बारह चक्रवर्ती
३०३ वे इस खुदाई से धराशायी होने लगे । नागकुमार भयभीत होकर इधरउधर भागने लगे। यह देखकर नागकुमारों का राजा ज्वलनप्रभ अत्यन्त क्रुद्ध हुआ और सगरपुत्रों के पास आकर कहने लगा-अरे दुष्टो ! आप भगवान अजितनाथ के भ्राता सगरचक्रवर्ती के पुत्र होकर भी यह अनर्थ क्यों कर रहे हैं । तुम्हारे इस अविचारी कृत्य से नागकुमारों के भवन धराशायी हो रहे हैं। अगर तुम्हें जीवित रहना है तो यह अपना अविचारी कृत्य बन्द कर दो । नागराजा ज्वलनप्रभ की इस चेतावनी से सगरपुत्रों ने खाई खोदना वन्द कर दिया । ज्वलनप्रभ अपने स्थान को चला गया ।
इसके बाद जानुकुमार ने अपने भाइयों से कहा इस खाई को जल से भर देना चाहिये और यह खाई गंगा के जल से ही भरी जा सकती है। अतः हमें गंगा नदी के प्रवाह को बदलकर उसे खाई की ओर लाना होगा । जानुकुमार की यह राय सब को पसन्द आई। उन्होंने दण्डरत्न की सहायता से गंगा का किनारा तोड़ दिया और उसके प्रवाह को मोड़कर उसे खाई में ला छोड़ा । गंगा के जल से समस्त खाई जलमय होगई । वह जल पाताल तक पहुँचा, जिससे नागकुमार देवताओं के भवन जल में डब गये। नागकुमार भयभीत होकर इधर-उधर भागने लगे । ज्वलनप्रभ ने जब यह देखा तो वह सगर पुत्रों पर अत्यन्त क्रुद्ध हो गया। वह नागराज, सगरपुत्रो के पास आया
और अपनी भयकर ज्वाला से उन्हें जलाकर भस्म कर दिया । साठ हजार सगरपुत्र मृत्यु की गोद में सदा के लिये सोगये ।
सगरपुत्रों की मृत्यु का समाचार लेकर सेनापति चक्रवर्ती सगर के पास पहुचा । उसने सगरपुत्रों के नागराज द्वारा भस्मसात् होने की खबर सुनाई। साठ हजार पुत्रों की मृत्यु का समाचार सुनकर सगर चक्रवर्ती बड़े दुःखी हुए । वे दिन-रात पुत्र वियोग में शोकाकुल एवं व्यथित रहने लगे। महाराज सगर का सुवुद्धि नामक मंत्री था । वह चक्रवर्ती को विविध प्रकार के उपदेश सुनाकर उन्हें सांत्वना देने लगा। मंत्रियों के उपदेश सुनकर चक्रवर्ती का शोक कुछ कम हो गया ।