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तीर्थदर चरित्र
२८३ तीर्थबरों के तीर्थ में चक्रवर्ती और वासुदेव
तीर्थदर के समकालीन जो चक्रवर्ती, वासुदेव आदि होते हैं वे उनके तीर्थ में कहे जाते है। जो दो तीर्थकर के अन्तर काल मे होते है वे अतीत तीर्थर के तीर्थ में समझे जाते हैं।
श्री ऋषभदेव स्वामी और अजितनाथ स्वामी ये दो तीर्थकर क्रमशः भरत और सगर चक्रवर्ती सहित हुए। इनके बाद तीसरे संभवनाथ स्वागी से लेकर दस गीतलनाथ स्वामी तक भाठ तीर्थकर हुए । तदन्तर श्री श्रेयांसनाथ स्वामी, वासुपूज्य स्वामी, विमलनाथ स्वामी, अनन्तनाथ स्वामी और धर्मनाथ स्वामी, ये पाच तीर्थकर वासुदेव सहित हुए अर्थात. इनके समय में क्रमशः त्रिपृष्ट, द्विपृष्ट, स्वयंभू, पुरुषोत्तम और पुरुषसिंह ये पाच वासुदेव हुए। धर्मनाथ स्वामी के बाद मघवा और सनत्कुमार चक्रवर्ती हुए। बाद में पांचवें शान्तिनाथ, छठे कुन्युनाथ और सातवें भरनाथ चक्रवर्ती हुए और ये ही तीनों कमशः सोलहजे, सत्रहये, और अठारहवें तीर्थकर हुए। फिर क्रमशः छठे पुरुषपुंडरीक वासुदेव, भाठवें सुभम चक्रवर्ती भौर सातवें दत्त वासुदेव हुए। बाद में उन्नीसवे श्री मलिनाथ स्वामी तीर्थकर हुए। इनके बाद बीसवें तीर्थकर श्री मुनिमुवत स्वामी और नववे महापद्म चक्रवर्ती एक साथ हुए । वीसवें तीर्थकर के बाद लक्ष्मण वासुदेव हुए। इनके पीछे इफीसवें नेमिनाथ तीर्थकर हुए एव इन्हीं के समकालीन दसवें हरिपेण चक्रवर्ती हुए। हरिषेण के बाद ग्यारहवें जय चक्रवर्ती हुए। इसके बाद बाइसवें तीर्थदर अरिष्टनेमि और नवें कृष्ण वासुदेव एक साथ हुए। बाद में वारहवे ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती हुए। ब्रह्मदत्त के बाद तेइसवे पार्श्वनाथ और चौवीसवें महावीर स्वामी हुए।
भरतक्षेत्र के आगामी २४ तीर्थकर आगामी उत्सर्पिणी में जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में चौबीस तीर्थकर होंगे। उनके नाम नीचे लिखे अनुसार हैं