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आगम के अनमोल रत्न बती देवी के साथ सुखानुभव कर तिरासी लाख पूर्व की आयु में दीक्षा ग्रहण की तथा घनघाती कर्मों को खपाकर केवलज्ञान प्राप्त किया। आपकी कुल आयु चोरासी लाख पूर्व की है । इस समय आप पुष्कराई द्वीप के वच्छ विजय में धर्मतीर्थ प्रवर्तन करते हुए भव्यों का कल्याण कर रहे हैं।
२०. अजितसेनस्वामी पुष्कराई द्वीप के पश्चिम महाविदेह में नलिनावती नाम के विजय मैं बीतशोका नाम की नगरी है । वहाँ राज्यपाल नाम का महाप्रतापी राजा राज्य करता था। उसकी अत्यन्त शीलवती कर्णिका नाम की मुख्य रानी थी। एक समय महारानी कर्णिका ने रात्रि में चौदह महास्वप्न देखे । उसी दिन महारानी ने गर्भ धारण किया । यथासमय महारानी ने एक दिव्यपुरुष-रत्न को जन्म दिया । बालक के जन्मते ही तीनों लोक में प्रकाश फैल गया । चौंसठ इन्द्रों ने मेरुपर्वत पर जन्मोत्सव कर भावी भगवान के प्रति अपनी असीम श्रद्धा का परिचय दिया । बालक का नाम अजितसेन रखा । तीन ज्ञान के धारक अजितसेन कुमार के सुवर्ण वर्ण जैसे दिव्य शरीर पर स्वस्तिक का चिन्ह अत्यन्त मोहक लगता है । युवावस्था में अजितसेनकुमार का विवाह अपने ही समान श्रेष्ठ राजकुलीन -कन्या रत्नमाला के साथ सम्पन्न हुआ । आप तिरासी लाख पूर्व तक संसारी भोग भोगते रहें। तदनन्तर प्रव्रज्या का उचित अवसर जानकर आपने वार्षिकदान दिया। इसके बाद आपने देव-देवियों, मनुष्य और स्त्रियों के विशाल समूह के बीच प्रव्रज्या ग्रहण की । पाँचसौ धनुष की ऊँचाई वाले प्रभु ने कर्म खपाने के लिये कठोर तप प्रारम्भ कर दिया । कठोर तप की साधना से आपने चार घनघाती कर्मों को नष्ट कर दिया और केवलज्ञान तथा केवलदर्शन प्राप्त किया। केवलज्ञान प्राप्त होने के पश्चात् चार तीर्थ की स्थापना कर धर्मचक्र का प्रवर्तन किया। इस समय आप पुष्कराई द्वीप के पश्चिम महाविदेह के नलिनावती विजय में धर्मोपदेश करते हुए भन्य प्राणियों का कल्याण कर रहे हैं। आप ८४ लाख
की आयु भोग कर निर्वाण प्राप्त करेगे।
पर्वत पर जन्मोत्सव