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तीर्थदर चरित्र
१७. वीरसेनस्वामी पुष्करार्द्ध द्वीप के पूर्व महाविदेह में पुष्करावती नामके विजय में पुण्डरिकिनी नाम की नगरी है । उस नगरी का राजा भूमिपाल था । उसको रानी का नाम भानुमती था । महारानी भानुमती को चौदह स्वप्न सूचित कर भगवान वीरसेन ने जन्मग्रहण किया । आपका चिन्ह वृषभ, पांचसौ धनुष का देहमान और वर्ण कंचन है। आपका विवाह महारानी राजसेना के साथ हुआ था। तिरासी लाख पूर्व की अवस्था में आपने वार्षिक दान देकर दीक्षा ग्रहण की और केवलज्ञान प्राप्तकर धर्मतीर्थ का प्रवर्तन किया। ८४ लाख पूर्व की अवस्था में आप निर्वाण प्राप्त करेंगे।
१८. महाभद्र स्वामी पुष्कराई द्वीप के पश्चिम महाविदेह मे वपु नाम के विजय में विजया नाम की नगरी है। वहाँ देवराय नाम के राजा राज्य करते थे। उनकी अग्रमहिषी का नाम था उमया । महारानी उमया को चौदह स्वप्न सूचितकर भगवान महाभद्र ने रानी के उदर से जन्म ग्रहण किया । चौंसठ इन्द्रों ने तथा देव-देवियोंने भगवान का जन्मोत्सव किया । भगवान का चिन्ह हाथी व वर्ण सुवर्ण जैसा है और ऊँचाई ५०० धनुष की है। युवावस्था में भगवान ने सूर्यकान्ता देवी के साथ विवाह किया । आयुष्य के एक लाख पूर्व शेष रहने पर भगवान ने दीक्षा ग्रहण की और केवल ज्ञान प्राप्त किया । वर्तमान में भगवान उपरोक क्षेत्र में धर्मोपदेश द्वारा जन कल्याण कर रहे हैं। आप ८४ लाख पूर्व की अवस्था में निर्वाण प्राप्त करेंगे।
१९. देवयशस्वामी पुष्कराई द्वीप के पूर्व महाविदेह में वच्छविजय में सुसीमा नाम की नगरी है । उस नगरी में सर्वभूति नाम के राजा राज्य करते थे। उनकी मुख्य रानी का नाम गंगादेवी था। देवयशस्वामी ने चौदह स्वान सूचित कर गगादेवी की कुक्षि से जन्म ग्रहण किया । भापका लाछन चन्द्र, वर्ण सुवर्ण और ऊँचाई पाचसौ धनुष है। मापने पद्मा