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आगम के अनमोल रत्न
इन्द्रों ने तथा देवी देवताओं ने सुमेरु पर जन्मोत्सव किया । महाराज कीर्तिराय ने अपने दिव्यबालक का बड़ी धूमधाम से जन्मोत्सव किया । बालक का नाम ऋषभानन रखा गया । वालक ऋषभानन की कंचनवर्णी काया पर सिंह का लांछन बड़ा सुन्दर लगता था । युवावस्था में ऋषभानन का विवाह जयादेवी के साथ सम्पन्न हुआ। पाँचसौ धनुष की ऊँचाई वाले ऋषभानन ने तिरासी लाख पूर्व की अवस्था में वार्षिक दान देकर प्रव्रज्या ग्रहण की । कठोर तप की साधना कर आपने सम्पूर्ण धनघाती कर्मों का नाश कर केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त किया । चार तीर्थों की स्थापना कर आपने तीर्थकर पद प्राप्त किया । आप ८४ लाख पूर्व की सम्पूर्ण आयु में निर्वाण पद प्राप्त करेंगे । वर्तमान में भव्य प्राणियों को अपनी दिव्यवाणी का अमृतपान कराते हुए आप घातकीखण्ड के वपुविजय में विचरण कर रहे हैं।
८. अनन्तवीर्यस्वामी धातकीखण्ड के पश्चिम महाविदेह में नलिनावती विजय में वीतशोका नाम की नगरी है । इस नगरी में मेघराय नामक प्रजापालक राजा राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम मंगलावती था। भगवान अनन्तवीर्य ने अपने जन्म से महारानी मंगलावती को भाग्यशालिनी बनाया था। पाच सौ धनुष्य की काया वाले व गज लांछन से सुशोभित सुवर्ण के रंग जैसे देदीप्यमान भनन्तवीर्य ने विजयादेवी के साथ विवाह किया । तिरासीलाख पूर्व तक गृहस्थाश्रम में रहने के बाद वार्षिकदान देकर आपने प्रव्रज्या ग्रहण की और धनघाती कर्मों को खपाकर केवलज्ञान प्राप्त किया । ८४ लाख पूर्व की अवस्था में आप निर्वाण प्राप्त करेंगे। ' इस समय महाप्रभु अनन्तवीय चारों तीर्थ को अपनी भव्य वाणी द्वारा पावन करते हुए धातकीखण्ड द्वीप के पश्चिम महाविदेह के नलिनावती विजय में विचरण कर रहे हैं।