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तीर्थङ्कर चरित्र
२५५ लाख पूर्व की है। जब भरतक्षेत्र में उत्सर्पिणी काल के तीसरे आरे में पन्द्रहवें तीर्थंकर विचर रहे होंगे उस समय आपका निर्गण होगा ।
२. श्री युगमन्दरस्वामी । जम्बूद्वीप के पश्चिम महाविदेह में वपुविजय में विजया नाम की नगरी है । वह अत्यन्त रमणीय है । उस नगरी में सुदृढ नाम के प्रजावत्सल राजा राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम सुतारा था। सुतारादेवी ने गज-लांछन वाले युगमन्दर नाम के तीर्थंकर भगवान को जन्म दिया । युगमन्दर ने युवावस्था में प्रियंगला नाम की राजकन्या से विवाह किया । तिरासी लाख वर्ष की आयु में आपने दीक्षा ग्रहण की और घनघाती कर्मों का क्षय कर केवलज्ञान प्राप्त किया । आपका वर्ण सुवर्ण जैसा है। ऊँचाई पाँचसौ धनुष्य है और वजऋषभनाराच संघयन है और समचतुरस्त्र संस्थान है। चौरासी लाख पूर्व की सर्वायु है । आप एक लाख वर्ष तक धर्मोपदेश देने के वाद निर्वाण पद प्राप्त करेंगे । आप इस समय वपु विजय में विराजमान हैं।
३. श्री बाहुस्वामी जम्बूद्वीप के पूर्व महाविदेह में वच्छ नाम के विजय में सुसीमापुरी नाम की अतिसुन्दर नगरी है । वहाँ राजधर्म का पालन करने वाले महाराजा सुग्रीव राज्य करते थे । उनको विजया नाम की रानी थी। विजयारानी ने वाहुकुमार नाम के वालक-रत्न को जन्म दिया। वाहुकुमार जन्म से ही तीन ज्ञानी थे । युवावस्था में आपका मोहना.
देवी के साथ विवाह हुआ । मृगलांछन से युक्त श्री वाहुकुमार ने तिरासी लाख पूर्व की अवस्था में दीक्षा ग्रहण कर केवलनान प्राप्त किया । आप पाँचसौ धनुष ऊँचे हैं । चौरासी लाख पूर्व की सम्पूर्ण आयु में आप निर्वाण पद प्राप्त करेंगे । आप वच्छ विजय में विचर