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आगम के अनमोल रत्न ommmmmmmmmmmmmmmmmwwwwwwwwwwwww.mपर छप्पन दिक्कुमारिओं ने प्रसूतिकर्म किया । पुत्र के जन्म होते ही आकाश निर्मल होगया, दिशाएँ स्वच्छ हो गई। प्रजा के हर्ष का पारावार नहीं रहा। तीनोलोक प्रकाशित होगये । आकाश में दुंदुभी बजने लगीं । शीतल मन्द सुगन्धित वायु वहने लगी । इन्द्रासन कांप उठा ।
अपने आसन को कम्पित देखकर क्षणभर के लिये इन्द्र भी स्तब्ध होगया किन्तु तत्काल ही उसे अवधिज्ञान से मालूम हो गया कि महाविदेह की पुष्कलावती विजय की राजधानी पुण्डरीकिणी में तीर्थकर प्रभु का जन्म हुआ है । फिर तो वह आनन्द से फूल उठा और उसने सिंहासन से नीचे उतरकर बाल-जिनेंद्र को नमस्कार किया।
___चौसठ इन्द्रों ने सुमेरु पर्वत पर भगवान का जन्मोत्सव और जन्माभिषेक किया और बालक को उनकी मां की गोद में रख दिया। जातकर्मादि संस्कारों के कराने के बाद बालक छा गुणनिष्पन्न नाम 'सीमन्धर' रक्खा । सीमन्धर कुमार को जन्म से ही तीन ज्ञान थे । पुण्यशाली आत्मा के प्रादुर्भूत होने से सर्वन भानन्द मंगल ही दिखाई देने लगा । भगवान के जन्म से श्रेयांस राजा को समृद्धि में असाधारण वृद्धि होने लगी।
मातापिता के स्नेह सुधा से पालित पोषित होकर के क्रमशः प्रभुने यौवन अवस्था प्राप्त की। युवावस्था में आपका देहभान पांचसौ धनुष ऊँचा हो गया। इच्छा न होते हुए भी कुटुम्बी जनों के आग्रह से रुक्मिणी नाम की सुन्दर राजकन्या के साथ आपका विवाह हुआ । जब तिरासीलाख वर्षे पूर्व वीत गये तब आपने वार्षिक-दान देकर प्रव्रज्या ग्रहण की और घनघाती कर्मों को नष्ट कर केवलज्ञान प्राप्त किया।
आप इस समय पुष्कलावती विजय में विचर कर धर्मदेशना द्वारा भव्यत्राणियों का कल्याण कर रहे हैं। आपकी सर्वायु चौरासी