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तीर्थङ्कर चरित्र
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३२वाँ चातुर्मास
वैशाली का चातुर्मास पूरा कर भगवान वाणिज्यग्राम पधारे । यहाँ पार्वापत्य गांगेय अनगार ने भगवान से दीक्षा ग्रहण की और अन्त में मोक्ष प्राप्त किया। ३२वां चातुर्मास आपने वैशाली में ही व्यतीत किया। ३३वाँ चातुर्मास
इस साल का वर्षावास भी भगवान ने राजगृह में ही किया । ३४वाँ चातुर्मास
३४ वा चातुर्मास भगवानने नालन्दा में किया। ३५ वाँ चातुर्मास
नालंदा से विहार कर प्रभु वाणिज्यग्राम पधारे और दूतिपलास नामक उद्यान में ठहरे । यहाँ आपके उपदेश से सुदर्शन श्रेष्ठी ने प्रव्रज्या ग्रहण की। सुदर्शन मुनि ने १२वर्ष का चारित्र पालकर मोक्ष प्राप्त किया। ३६वाँ चातुर्मास
इस वर्ष का चातुर्मास भगवान ने वैशाली में व्यतीत किया । ३७चाँ चातुर्मास
चातुर्मास की समाप्ति के पश्चात् भगवान विहार कर कोशलदेश के प्रसिद्ध नगर साकेत पधारे । यहाँ कोटिवर्ष के राज किरात ने आपके दर्शन दिये और उपदेश सुनकर आपसे प्रव्रज्या ग्रहण की । वहाँ से विहार कर मथुरा, शौर्यपुर, नन्दीपुर आदि नगरों को पावन करते हुए विदेहभूमि की नगरी मिथिला पधारे और चातुर्मास यहीं व्यतीत किया। ३८चा चातुर्मास
चातुर्मास समाप्तकर भगवान राजगृह पधारे और इस वर्ष का चातुर्मास आपने राजगृह में किया ।