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आगम के अनमोल रत्न गौतमस्वामी के साथ केशिकुमार श्रमण का वार्तालाप हुआ । गौतमस्वामी के विचारों से प्रभावित होकर केशिकुमार श्रमण अपने ५०० शिष्यों के साथ भगवान महावीर के श्रमणसंघ में मिल गये।
श्रावस्ती से भगवान अहिछत्रा होते हुए हस्तिनापुर पधारे । यहाँ हस्तिनापुर के शिवराजर्षि ने भगवान से निर्गन्ध दीक्षा ग्रहण की और कठोर तप कर मोक्ष प्राप्त किया ।
हस्तिनापुर से भगवान मोका नगरी होते हुए वाणिज्यग्राम पधारे और यहीं चातुर्मास किया । २९वाँ चातुर्मास
इस वर्ष का चातुर्मास आपने राजगृह में किया । यहाँ अनेक मुनियों ने विपुलाचल पर्वत पर अनशन कर स्वर्ग और निर्वाण प्राप्त किया। ३०वाँ चातुर्मास
राजगृह का चातुर्मास पूरा कर भगवान पृष्ठचंपा पधारे । यहाँ शाल और महाशाल राजा ने भगवान से प्रवज्या ग्रहण की। वहाँ से भगवान ने विहार कर दिया। तीसा वर्षावास भगवान ने वाणिज्य ग्राम में व्यतीत किया । ३९वाँ चातुर्मास
चातुर्मास समाप्त होते ही भगवान महावीर कोशल राष्ट्र के साकेत श्रावस्ती आदि नगरों में ठहरते हुए पांचाल की ओर पधारे और काम्पिल्य के बाहर सहस्रान वन में ठहरे।
काम्पिल्यपुर में सात सौ परिव्राजकों के साथ अम्मड़ परिव्राजक आपका उपदेश सुनकर श्रमणोपासक बना । वह परिव्राजक का वेश रखता हुआ भी जैन श्रावकों के आचार विचार पालता था।
काम्पिल्य से भगवान ने विदेह की ओर विहार किया और ३१वां चातुर्मास विदेह की राजधानी वैशाली में व्यतीत किया।