________________
तीर्थकर चरित्र
२३५ उनकी पत्नी शिवानन्दा ने श्रावक के बारह व्रत ग्रहण किये । इस वर्ष का चातुर्मास आपने वाणिज्यप्राम में व्यतीत किया । १६वाँ चातुर्मास
वाणिज्यग्राम का चातुर्मास पूर्णकर भगवान ने श्रमण संघ के साथ मगध भूमि में प्रवेश किया। अनेक ग्राम नगरों को पावन करते हुए आप राजगृह के गुणशील उद्यान में पधारे । यहाँ के सम्राट श्रेणिक ने सदलबल भगवान के दर्शन किये । राजगृह के प्रसिद्ध धनपति शालिभद्र ने तथा धन्य आदि ने भगवान से प्रवज्या ग्रहण की ।
इस वर्ष का चातुर्मास भगवान ने राजगृह में विताया । १७वाँ चातुर्मास
राजगृह से भगवान चपा पधारे । यहाँ चंपा के राजा दत्त और उसकी रानी रक्तवती के पुत्र महचंद कुमार ने आपके उपदेश से दीक्षा ग्रहण की। चंपा से आप विकट मार्ग को पार करते हुए सिन्धुसौवीर की राजधानी वीतभय पधारे । वीतभय का राजा उदायन श्रमणोपासक था । भगवान महावीर के दर्शन कर-वह बड़ा प्रसन्न हुआ । कुछ काल वहाँ विराजकर भगवान वाणिज्य ग्राम पधारे और आपने श्रमण संघ के साथ यहीं चातुर्मास पूरा किया। १८वाँ चातुर्मास
चातुर्मास की समाप्ति के बाद आपने काशी देश की राजधानी वाराणसी की ओर विहार कर दिया। अनेक स्थानों पर निर्ग्रन्थ प्रवचन का प्रचार करते हुए आप वाराणसी पहुंचे और वहां कोष्ठक नामक उद्यान में ठहरे। । यहाँ के करोड़पति गृहस्थ चुलनी पिता और उसको स्त्री श्यामा तथा सुरादेव और उसकी स्त्री धन्या ने भगवान से श्रावक व्रत ग्रहण किये और निर्ग्रन्थ प्रवचन के आधारस्तम्भ बने ।
वनारस से आपने पुनः राजगृह की भोर विहार किया। मार्ग में आलभिया नगरी आई । भगवान श्रमणसंघ के साथ आलभिया के शंखवन उद्यान में ठहरे । यहाँ के हजारों स्त्रीपुरुषों ने भगवान