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तीर्थङ्कर चरित्र
२०वा चातुर्मास___वर्षाकाल पूरा होने पर भगवान ने कोशांची की ओर विहार किया । मार्ग में आलभिया नगरी पड़ती थी। भगवान कुछ कालतक मालभिया में ही विराजे । यहाँ ऋषिभद्र प्रमुख श्रमणोपासक रहते थे । उन्होंने भगवान से प्रश्न पूछे और योग्य समाधान पाकर बड़े प्रसन्न हुए । आलभिया से विहार कर भगवान कोशांची पधारे ।
उस समय चण्ड-प्रद्योतन जो उज्जैनी का राजा था। उसने कोशाबी को घेर लिया था। कोशांबी पर शासन महारानी मृगावती करती थी। उनका पुत्र उदयन नाबालिग था। चण्डप्रद्योतन मृगावती को अपनी रानी बनाना चाहता था।
भगवान महावीर के आगमन से मृगावती को बड़ी प्रसन्नता हुई। वह महावीर के समवशरण में पहुँची । उस समय चण्डप्रद्योतन भी भगवान की सेवामें उपस्थित था । महारानी मृगावती भान्मकल्याण का सुन्दर अवसर जानकर सभा के बीच खड़ी होकर बोली-भगवन् । मै प्रद्योत की आज्ञा लेकर आपके पास दीक्षा लेना चाहती हूँ। इसके बाद अपने पुत्र उदयन को प्रद्योत के संरक्षण में छोड़ते हुए उसने दीक्षा की आज्ञा मांगी । यद्यपि प्रद्योत की इच्छा मृगावती को स्वीकृति देने की नहीं थी पर उस महती सभा में लज्जावश इनकार नहीं कर सका ।। ___भंगारवती आदि चण्डप्रद्योतन की भाठ रानियों ने भी दीक्षा लेने की आज्ञा मागी । प्रद्योत ने उन्हे भी आज्ञा दे दी। भगवान महावीर ने मृगावती अंगास्वती आदि रानियों को दीक्षा देकर उन्हें आर्या चन्दना को सौंप दिया। भगवानने कोशावी से विहार कर विदेह की राजधानी वैशाली में पदार्पण किया। मापने यहीं चातुर्मास व्यतीत किया । २१वाँ चातुर्मास
वर्षावास पूरा होने पर भगवान ने वैशाली से उत्तर विदेह की ओर विहार किया और मिथिला होते हुए काकन्दी पधारे । काकन्दी में धन्य, सुनक्षत्र, आदि को दीक्षा दी।