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आगम के अनमोल रत्न
काकन्दी से भगवान ने पश्चिम की भोर विहार किया , और. श्रावस्ती होते हुए काम्पिल्य पधारे । काम्पिल्य निवासी कुण्डकोलिक गृहपति को श्रमणोपासक बनाकर अहिच्छत्रा होते हुए गजपुर पहुँचे यहाँ अनेक व्यक्तियों को प्रतिबोधित कर आप पोलासपुर पधारे । पोलासपुर के धनाढ्य कुम्भकार सद्दालपुत्र जो गोशालक मतानुयायी था उसकी शाला में विराजे ।
भगवान महावीर का उपदेश सुनकर सद्दालपुत्र और उसकी भार्या अग्निमित्रा श्रमणोपासक बन गई ।
जब गोशालक को सद्दालपुत्र के आजीविक संप्रदाय के परित्याग का समाचार मिला तो वह अपने संघ के साथ सद्दालपुन के पास आया और उसे पुनः आजीविक बनने के लिये समझाने लगा । गोशालक की बातों का सद्दालपुत्र पर जरा भी असर नहीं पडा । गोशालक निराश होकर चला गया ।
भगवान ने इस वर्ष का चातुर्मास वाणिज्यप्राम में व्यतीत किया । २२वाँ चातुर्मास
वर्षाकाल वीतने पर भगवान राजगृह पधारे यहाँ महाशतक गाथापति ने श्रावकधर्म स्वीकार किया। साथ ही अनेक पापित्य श्रमणों ने भी आपके पास प्रवज्या ग्रहण की। __इस वर्ष भगवान ने वर्षावास राजगृह में ही किया। २३वाँ चातुर्मास
वर्षाकाल पूरा होने पर भगवान विहार करते हुए क्रमशः कृतंगला नगरी पधारें और छत्रपलास चैत्य में विराजे । यहाँ श्रावस्ती के विद्वान परिव्राजक कात्यायन गोत्रीय स्कन्धक भगवान के पास आया और अपनी शंकाओं का समाधान पाकर भगवान के पास प्रवजित हो गया ।' । भगवान श्रावस्ती से विदेहभूमि की तरफ पधारे और वाणिज्यग्राम में जाकर वर्षावास किया । । २४वाँ चातुर्मास